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जरूरी भेदाभेद
भेद एसोसिएशनका सदस्य तो मै नहीं हूँ, सदस्य कहींका भी नहीं हूँ, पर एक मित्र सदस्य हैं, उनकी वजहसे कभी कभी यहाँ श्रा जाता हूँ। एसोसिएशनको ज्ञात हुआ है कि मै विलायत गया हूँ, अँगरेज़ी बोल लेता हूँ, अतः मेरी उपस्थिति उन्हें अप्रिय नहीं होती।
यही क्यों, कुछ लोगोंसे वहाँ बेतकल्लुफी भी हो गई है। एक हैं लाला महेश्वरनाथजी । बहुत जिन्दादिल आदमी हैं। वकील हैं,
और अच्छे बड़े वकील है । जायदाद भी है । अध्ययनशील है और नये विचारोके प्रशंसक हैं । सार्वजनिक सेवाके कामोंमें अच्छा योग देते रहते हैं। दिल खोलकर मिलते और बात करते है। मै उनसे प्रभावित हूँ।
आज बीचमें मसला सोशलिज्मका था और वैठक सरगर्म थी। महेश्वरजीको सोशलिज्मका कायल होनेसे कोई बचाव नहीं दीखता। उन्हें अचरज है कि कोई आदमी ईमानदार होकर सोशलिज्मको माने बिना कैसे रह सकता है ! यह सच्ची बात है, कोई जबरदस्ती सच्चाईसे आँख मीचना चाहे तो वात दूसरी; पर सोशलिज्म उजालेके समान साफ है । हम और आप उसके समर्थक हो सकते है, चाहें तो विरोधी हो सकते हैं । पर हमारे समर्थन और विरोधकी गिनती क्या है ! सोशलिज्म युग-सत्य है, वह युग-धर्म है। ___मै इस तरहकी बातोंके वीचमें कुछ विमूढ़ बन जाता हूँ,-सत्य क्या है, यह मैं नहीं जानता । और जब कोई निर्धान्त होकर सामने १५४