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'आप क्या करते हैं?' 'मैं डाक्टर हूँ। 'आप क्या करते है !' 'मैं वकील हूँ।' 'तुम क्या करते हो ! 'मै श्रीवास्तव हूँ।'
मैं श्रीवास्तव तो हूँ ही । इसमें रत्ती-भर झूठ नहीं है । फिर, मेरी तरहका जवाब देनेपर वकील और डाक्टर भी बेवकूफ क्यों नही समझे जाते !
वे लोग मेरे जैसे, अर्थात् बेवकूफ़, नहीं है यह तो मैं अच्छी तरह जानता हूँ। तब फिर उनके वकील होनेसे भी अधिक मैं श्रीवास्तव होकर बेवकूफ़ किस बहाने समझ लिया जाता हूँ, यह मैं जानना चाहता हूँ।
'मूर्ख!' एक सद्गुरुने कहा, 'तू कुछ नही समझता । अरे, डाक्टर डाक्टरी करता है, वकील वकालत करता है। तू क्या श्रीवास्तवी करता है।'
यह बात तो ठीक है कि मै किसी 'श्री' की कोई 'वास्तवी' नहीं करता । लेकिन, सद्गुरुके ज्ञानसे मुझमें बोध नहीं जागा | मैने कहा, 'जी, मैं कोई श्रीवास्तवी नहीं करता हूँ। लेकिन, वह वकालत क्या है जिसको वकील करता है ! और वह डाक्टरी क्या है जिसको डाक्टर करता है !'
'अरे मूढ़ !' उन्होंने कहा, 'तू यह भी नहीं जानता! अदालत जानता है कि नहीं ? अस्पताल जानता है कि नहीं ?' १२८