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नेहरू और उनकी कहानी
भीड़मेंसे कुछ लोगोंने कहा-ठीक तो है । रास्ता यह नहीं है। हम पहलेसे जानते थे, आओ जरा सुस्ता लें, फिर लौटेंगे।
जवाहरलालने कहा-हाँ, रास्ता तो यह नहीं है और आओ जरा सुस्ता भी लें । पर लौटना कैसा ? देखो, दायें हाथ रास्ता जाता है। इधर चलना है।
भीडमेंसे कुछ लोगोंने कहा लेकिन गाँधी...?
जवाहरलालका कण्ठ आई हो आया। बड़ी कठिनाईसे उसने कहा-गाँधी महान् है, लेकिन रास्ता... ___ आगे जवाहरलालसे न बोला गया। वाणी रुक गई, आँखोंमें आँसू आ गये। इसपर लोगोंने कहा-जवाहरलालकी जय ! कुछने वही पुराना घोष उठाया-गाँधीकी जय !
और गाँधी उसी रास्तेपर आगे चला जा रहा था जहाँ इन जयकारोकी आवाज़ थोड़ी थोड़ी ही उस तक पहुँच सकी। .
ऊपरके कल्पना-चित्रसे जवाहरलालकी व्यथाका अनुभव हमें लग सकता है । उस व्यथाकी कीमत प्रतिक्षण उसे देनी पड़ रही है, इसीसे जवाहरलाल महान् है । उस व्यथाकी ध्वनि पुस्तकमे व्यापी है, इसीसे पुस्तक भी साहित्य है । जिसकी ओर बरबस मन उसका खिंचता है, उसीसे बुद्धिकी लड़ाई ठन पड़ी है। शायद, भीतर जानता है, यह सब बुद्धि-युद्ध व्यर्थ है, लेकिन व्यर्थताका चक्कर एकाएक कटता भी तो नहीं । बुद्धिका फेर ही जो है । आज उसीके व्यूहमें घुसकर योद्धाकी भाँति जवाहरलाल युद्ध कर रहा है, पर निकलना नहीं जानता।
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