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आप क्या करते हैं।
पर आपसे बात करते समय पिताकी बात छोडूं। अपने इस जीवनमें मैंने उन्हें सदा खोया पाया । रो-रोकर उन्हें याद करनेसे आपका क्या लाभ ! और आपको क्या, मुझे क्या-दोनोंको आपके लाभकी बात करनी चाहिए। ___ तो मैंने कहा, 'कृपापूर्वक बताइए, क्या करूँ ? बहुत भटका, पर मैने जाना कुछ नहीं। आप मिले हैं, अब आप बता दीजिए।'
उन नए मित्रने बताया कुछ नहीं, वे बिना बोले आगे बढ़ गये। मैं भी चला । आगे उन्हे एक अन्य व्यक्ति मिले । पूछा, 'आप क्या करते हैं ?
उत्तर मिला, ' मैं डाक्टर हूँ।'
सज्जन मित्रने कहा, 'ओः आप डाक्टर है ! बड़ी खुशी हुई। नमस्ते डाक्टरजी, नमस्ते । खूब दर्शन हुए । कभी मकानपर दर्शन दीजिएन। जी हाँ, यह लीजिए मेरा कार्ड।"रोडपर""कोठी है।
-जी हॉ, आपकी ही है। पारिएगा। कृपा कृपा । अच्छा, नमस्ते।' __मुझे इन उद्गारोंपर बहुत प्रसन्नता हुई । किन्तु, मुझे प्रतीत हुआ कि मेरे दयाराम होनेसे उन व्यक्तिका डाक्टर होना किसी कदर अधिक ठीक बात है । लेकिन, दयाराम होना भी कोई गलत बात तो नहीं है!
किन्तु, मित्रवर कुछ आगे बढ़ गये थे । मै भी चला । एक तीसरे व्यक्ति मिले । कोठीवाले मित्रने नाम-परिचयके बाद पूछा, 'आप क्या करते है !
'वकील हूँ।' 'ओः वकील है ! बड़ी प्रसन्नताके समाचार हैं । नमस्ते, वकील
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