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प्रेमचन्दजीकी कला
श्रीप्रेमचन्दजीका ताज़ा उपन्यास ' ग़बन ' हाल ही निकला है । निकला तभी मैने इसे पढ़ लिया। लेकिन, जो मुझे वक्तव्य हो सकता है, वह लिखता अब हूँ | चीज़को समझने और पुस्तकके असरको ठंडा होने देनेके लिए मैंने कुछ समय ले लिया है। ठंडा होकर बात कहना ठीक होता है, जब व्यक्ति पुस्तकसे अपनेको अलहदा खड़ा करके मानो उसपर सर्वभक्षी निगाह डाल सके ।
प्रेमचन्दजी हिन्दीके सबसे बड़े लेखक है । हम हिन्दीभाषाभाषी उनके मूल्यको ठीक आँक नहीं सकते। हम चित्रके इतने निकट है कि उसकी विविधता, उसका रंग-वैषम्य हमें प्रच्छन्न कर देता है; उसमें निवास करती हुई और उस चित्रको सजीवता प्रदान करती हुई एकता हमारी पकड़ने नहीं आती। जो एकाध दशाब्दि अथवा एकदो भाषाका अंतर बीचमे डालकर प्रेमचन्दको देखेगे, वे, मेरा अनुमान है, प्रेमचन्दको अधिक समझेंगे, अधिक सराहेंगे । वर्तमानकी अपेक्षा भविष्य में और हिन्दीको छोड़कर जहाँ अनुवादोद्वारा अन्य भाषाओंमे पहुँचेंगे, वहाँ उनको विशेष सराहना प्राप्त होगी ।
लेकिन, यत्नद्वारा हम अपनी दृष्टिमें कुछ कुछ वैसी क्षमता ला सकते है कि बहुत पासकी चीज़को मानों इतनी दूरसे देख सके कि वह हमें अपनी सम्पूर्णतामें, अपनी एकतामें, दीखे । अगर रचनाओके भीतर पैठकर, मानों इस सीढ़ीसे, हम रचनाकारके हृदयमें पहुँच
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