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जाँय जहाँसे कि उसकी रचनाओंका उद्गम है और जहाँसे उसे एकता प्राप्त होती है, तो हम रसमे डूब जायें । __ अपने भीतरके स्नेह, सहानुभूति और कौशलको विविध भाँतिसे कलमकी राह उतार कर कलाकारने तुम्हारे सामने ला रक्खा है। तुम उन शब्दों, भाषा, प्लाट, और प्लाटके पात्रोंका मानों सहारा भर लेकर यदि हृदयमेंसे फूटते हुए झरनों तक पहुँच जा सकते हो, तो वहाँ स्नान करके आनंदित और धन्य हो जाओगे । नहीं तो, कालिजीय विद्वानकी तरह उसकी भाषाकी खूबी और त्रुटि
और उसके व्याकरणकी निर्दोषता-सदोषतामे फंसे रहकर उसकी छान-बीनका मज़ा ले सकते हो।
मुझे व्याकरणकी चिन्ता पढ़ते समय बहुत नहीं रहती । भाषाकी चुस्तीका या शिथिलताका ध्यान उसीके ध्यानकी गरजसे मै नहीं रख पाता । भाषाकी खूबी या कमीको, सम्पूर्ण वस्तुके मर्मके साथ उसका किसी न किसी प्रकार सामंजस्य बैठाकर, मैं देख लेना चाहता हूँ। अतः, यह नहीं कि मै उस ओरसे नितांत उदासीन या क्षमाशील हो रहता हूँ, किन्तु वहाँ समात करके नहीं बैठ रहता।
प्रेमचंदजीकी कलमकी धूम है । बेशक, वह धूमके लायक है। उनकी चुस्त-दुरुस्त भाषापर, उनके सुजड़ित वाक्योपर, मै किसीसे कम मुग्ध नहीं हूँ। बातको ऐसा सुलझाकर कहनेकी आदत, मैं नहीं जानता, मैंने और कहीं देखी है। बड़ीसे बड़ी बातको बहुत उलझनके अवसरपर ऐसे सुलझा कर, थोड़ेसे शब्दोंमें भरकर कुछ इस तरहसे कह जाते हैं जैसे यह गूढ, गहरी, अप्रत्यक्ष बात उनके लिए नित्यप्रति घरेलू व्यवहारकी जानी-पहचानी चीज़ हो । इस तरह, जगह