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प्रश्नोत्तर प्रश्न - साहित्यका जीवनसे क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर—जीवनकी अभिव्यक्तिका एक रूप साहित्य है । कहा जा सकता है कि व्यक्ति - जीवनकी सत्योन्मुख स्फूर्ति जब भापाद्वारा मूर्त्त और दूसरेको प्राप्त होने योग्य बनती है, तब वही साहित्य होती है। प्रश्न – क्या साहित्यके बिना जीवन अपूर्ण है ?
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उत्तर ——— कहना पड़ेगा कि अपूर्ण ही है । पूर्ण न होता तो 1 साहित्य जन्मता ही क्यों ? यह तो जातिकी और इतिहासकी अपेक्षासे समझिए । व्यक्तिकी अपेक्षासे आप पूछ सकते है कि स्वप्नके बिना क्या व्यक्ति नहीं जी सकता ? असल बात तो यह है, कि स्वप्नके साथ भी व्यक्ति अपूर्ण है । क्या स्वप्न किसी क्षण भी सम्पूर्णताका आकलन कर सकता है ! पर वह सम्पूर्णताकी ओर उड़ता तो है, छूता तो है; फिर भी, स्वप्नके योगके साथ भी व्यक्ति क्या अपूर्ण नहीं है? स्वप्नके बिना तो है ही । तब, आप उत्तर यही समझें कि साहित्यके साथ भी जीवन सम्पूर्ण नहीं है । इतना अवश्य है कि साहित्यके बिना तो वह और भी अपूर्ण है । अपूर्णताका आधार लेकर जो सम्पूर्णताकी चाह प्राणीमें उठती है, वही साहित्यकी आत्मा है।
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प्रश्न -- रोटी मुख्य है या साहित्य ?
उत्तर -- यह सवाल तो ऐसा है जैसे यह पूछना कि जब आप पानी पीते हैं, तो हवाकी आपके लिए क्या ज़रूरत है ? आदमी सिर्फ पेट ही नहीं है। और मै यह भी कहना चाहता हूँ कि पेट भी वह चीज़ नहीं है जिसे सिर्फ रोटीकी ही ज़रूरत
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