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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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जैन मान्यतानुसार ऐसी अनन्त चौबिसियां हुई है और हर आगामी काल में होती रहेंगी। वर्तमान चौवीसी के परम आराध्य तीथ कर भगवानों के शुभनाम आदि इस प्रकार हैं:--
॥तीर्थ'करों के माता पितादिक ॥
पिता
जन्म
लछन वृषभ हाथी
चैः कृ०८ म० शु०८ म० शु०१४ म० शु०२
प्रश्व
बंदर
कोंच
वै० शु०८
नाभिराजा जित शत्रु जितारी सवर मेघाथ श्रीधर सुप्रतिष्ठ महासेन सुग्रीव दृढरथ
नंदा
विष्णु
विष्णु
गेंडा
नाम जन्मस्थान
माता १ ऋषभदेव विनीता मरुदेवी
अजितनाथ · अयोध्या विजया ३ संभवनाथ सावत्थी सेन्या ४ अभिनन्दन अयोध्या सिद्धारय ५ सुमतिनाथ अयोध्या सुमंगला ६ पद्मप्रभु
कौशांबी सुसीमा ७ सुपार्श्वनाथ वणारसी पृथ्वी ८ चंद्रप्रभु चंद्रपुरी लक्ष्मणा है सुविधिनाथ काकंदी श्यामा १० शीतलनाथ भदिलपुर ११ श्रेयांसनाथ सिंहपुरी १२ वासुपूज्य
चंपापुरी
जया १३ विमलनाथ कपिलपुर श्यामा १४ अनंतनाथ अयोध्या सुयशा १५ धमनाथ १६ शांतिनाथ हस्तिनापुर अविरा १७ कुथुनाथ हस्तिनापुर श्रीदेवी १८ अरहनाथ हस्तिनापुर श्र,देश १६ मल्लीनाथ मथुरा प्रभावती २० मुनिसुत्रत . राजग्रही पद्मावती २१ नेमिनाथ मथुरा वत्रादेवी २२ नेमिनाथ सौरीपुर शिवादेवी २३ पाश्वनाथ वणारसो वामादेवी २४ महावीर स्वामी क्षात्रियकुंड त्रिशला
वसुपूज्य कृतवर्म सिंहसेन
भानु विश्वसेन सूरराज
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सुव्रता
पदम का० कृ०१२ स्वास्तिक जे शु० १२ चंद्रमा पौ० कृ०१२ मगर म० कृ०५ श्रीवत्स
मा कृ०१२
फा०० १२ भैंसा का० कृ०१४ सुअर म. शु० ३ बाज 4. कृ. १३
म० शु. ३
ज्ये कृ०१३ बकरा वै० कृ० १४ नंदावर्त म. शु. १० कुम्भ
___म. शु० १० कछुपा जै० कृ. ८ नीलकमल श्री० कृ०८
श्री० शु०५ पो० कृ. १० चै० शु० १
वज
सुदर्शन
कुभराज सुमित्र विजयसेन समुद्र विजय अश्वसेन सिद्धार्थ
शंख
सर्प
सिंह
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