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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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लघीवस्त्रय, प्रगणसंग्रह, न्यायविनिश्चय, सिद्धिनिश्चय प्रमाण प्राकृत गद्य में ५४ महापुरुषों के चरित्र लिखे और तत्वार्थ की राजवर्तिक टीका । हैं (चपन्नमदारिस चरियं ) । ये शीलाचार्य और विद्यानन्दः - विक्रम की नौवीं शताब्दी में दिगम्बरा. शङ्काचार्य एक ही हैं या अन्य हैं यह अनिश्चित हुए हैं । चार्य विद्यानन्द हुए । इन्होंने 'अष्टसहस्त्री' नामक है। इसी नामके कई आचार्य प्रौढ़ प्रन्थ लिखकर अनेकान्तवाद पर होने वाले सिद्धर्षिसूरि-ये महान् जैनाचार्य हुए हैं । इन्होंने आक्षेपों का तर्कसंगत उत्तर दिया है । तत्वार्थसूत्र 'उपमितिभव प्रपञ्च कथा नामक' विशाल रूपक ग्रन्य पर श्लोक बार्तिक नाम से टोका लिखी है। आप्तपरीक्षा, की रचना की है । पत्रपरीक्षा, प्रमाणपरीक्षा, सत्यशासन परीक्षा, युक्नुशासनटीका, श्रीपुरपार्श्वनाथ स्तोत्र, बिद्यानन्द महोदय ( अनुपलब्ध ) ग्रंथ भी आपके हैं । उद्योतनसूरी ( दाक्षिणयांक सूरी ) इन आचार्य ने वि० सं० ८३४ में “कुवलयमाला” नामक प्रसिद्ध कथा प्राकृतभाषा में बनाई । चम्पू ढंग की यह कथा प्राकृतसाहित्य की अमूल्य निधि है ।
इन सिद्धषि ने चन्द्र केवलि चरित्र को प्राकृत से संस्कृत में परिवर्तित किया। न्यायाबतार पर संस्कृत टीका लिखी । वि० सं० ६७४ में इन्होंने धर्म स गणिकृति प्राकृत उपदेशमाला पर संस्कृत विवरण लिखा है । अनन्तवीर्य — इन्होंने अकलंक के सिद्धिविनिश्चय ग्रन्थ की टीका लिख कर अनेक विद्वानों के लिए मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
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आचार्य जिनसेनः - इन्होंने हरिबंश पुराण की रचना की ।
वीरसेन - जिनसेनः--इन दिगम्बर आचार्यों ने घवला और जयधवला नामक विस्तृत टीकाएँ लिखी हैं । दिगम्बर परम्परा में इनका बड़ा महत्व है। धवला और जयधवला के बीस हजार श्लोकों का निर्माण वीरसेन ने किया ।
धनंजय - इन्होंने धनजय नाम माला नामक कोश ग्रन्थ लिखा है । द्विसंधान काव्य (शपाण्वीय) तथा विपापहार स्तोत्र इनकी रचनाएँ हैं । शीलांकाचार्य - सवत् ६३३ में इन आचार्य ने आचारांग सूत्र पर तथा बाहरीगांण की सहायता से सूत्रकृताङ्ग पर संस्कृत में टीकाएँ" रचीं । जीवसमाज
पर वृत्ति भी लिखी । शीलाचार्य ने दस हजार श्लोक
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माणिक नंदी: - अकलंक के ग्रन्थों के अधार पर इन्होंने 'परीक्षामुख' नामक न्याय ग्रन्थ की रचना को है । इस पर प्रभाचंद्राचार्य ने 'प्रमेयकमलमार्त्त'ड' नामक प्रौढ़ और विशाल टीका लिखी है । देवसेन --- इन्होंने दर्शनसार, आराधनासार, लघुनयचक्र, वहन्नपचक्र, आप पद्धति और भावलं ब्रह ग्रन्थ लिखे हैं । कवि पम्प ने आदिपुराण चम्पू, विक्रमार्जुन विजय तथा कवि पान ने शान्ति पुराण ग्रन्थ लिखा है ।
तर्कपञ्चानन अभयदेव सूरि :-- ये पद्य ुम्नसूरि के जो वैदिक शास्त्रों के पारगामों और वाद-कुशल थे । शिष्य थे। अभयदेव सूरि को न्यायवनसिंह और तर्कपञ्चानन की उपाधि प्राप्त थी । इन्होंने सिद्धसेन
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