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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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आदि संस्कृत हिन्दी को ज्ञान वर्धक पुस्तकें प्रकाशित धारण किये । आपका स्वभाव अत्यन्त शांत और हुई हैं, जिससे आपका ज्ञानानुराग सहज में समझा सरल है। वि० सं० १९८३ में नारनौल में आपको जा सकता है।
__आचार्य पद दिया गया। आपकी क्रियाशीलता और ___ आपकी ज्ञान पिपासा अमिट है और उस अतप्ति विद्वत्ता की संयुक्त प्रान्त के संतों में अच्छी प्रतिष्ठा की पूर्ति के लिए आप सवेरे से लेकर शाम तक है । आपने सादडी साधु सम्मेलन में श्रमण संगठन आवश्यक कार्यों को छोड़कर शास्त्रावलोकन करते ही के लिए प्राचार्य-पद का त्याग किया और सम्मेलन रहते हैं। सचमुच ज्ञानार्जन व प्रवर्धन की यह प्रवृत्ति द्वारा आप अलवर भरतपुर यू० पी० क्षेत्र के प्रान्तीय हर व्यक्ति के बूते से बाहर की बात है। आप अध्य- मंत्री निर्वाचित हुए हैं। यबाध्यापन कार्य से कभी थकते नहीं और न कभी उपाध्याय कविवर पं० मनि श्री पाटे पर सहारे के बल बैठते तथा दिन में लेटते
अमरचंदजी महाराज
कविवर मुनि श्री अमरचन्दजी महाराज पूज्य श्री विगत सादडी साधु सम्मेलन में आपने महत्वपूर्ण पृथ्वीचन्दजी महाराज के विद्वान् शिष्य हैं । आगमों भाग लिया और श्रमण एकता का आदर्श स्थापित और शास्त्रों का आपने गहन अध्ययन किया है। करने में मक्रिय सहयोग देकर संघ को सफल बनाया। आपकी प्रवचन शैलीयुग के अनुरूप सरल और साहि.
त्यिक है । आपने गद्य-पद्य कई ग्रन्थों की रचना करके सम्मेलन ने आपको साहित्य मंत्री एवं म्हमंत्री का
साहित्य के क्षेत्र में काफी प्रकाश फैलाया है। आगरा पददिया, जिसको आपने अच्छी तरह निभाया और गत के "सन्मति ज्ञानपीठ' प्रकाशन संस्था ने आपके भीनासर सम्मेलन में आप उपाध्याय पद से विभूषित साहित्य को कलात्मक रीति से प्रकाशित किया है। किए गए हैं । आपके ज्ञान और चरित्र से स्थानक आपके विचार उदार और असाम्प्रदायिक हैं। वासी समाज को बड़ी २ आशाएं हैं । आप प्रभाव
आपकी विचारधारा समाज और राष्ट्र के लिये
अभीनन्दनीय हैं। सादडी सम्मेलन में आप एक शाली वक्ता, साहित्यकार और चरित्रशील आध्यात्मिक
अग्रगण्य मुनिराज के रूप में उपस्थित थे। इस समय मुनि हैं।
स्थानकवासी जैन समाज के मुनिराजों में आपका आपके शिष्यों में सर्व श्री छोटे लक्ष्मीचन्दजी गौरवपूर्ण स्थान है।। महाराज आदि ५-६ हैं जो सबके सब सेवाभावी और पं० रत्न श्री प्रेमचन्द्रजी महाराज श्रमण परम्परा के कट्टर अनुयायी हैं। जहां जहां भी आपने चातुर्मास किया वहां वहां की जनता आपके
___स्थानकवासी जैन समाज में मुनि श्री प्रेमचन्द गुणों से प्रभावित हुए बिना न रही। जी महाराज "पंजाब केशरी' के नाम से प्रसिद्ध हैं।
आपका भरा हुआ और पूरे कद का शरीर और आप पूज्य श्री पथ्वीचन्द्रजी महाराज की सिंह-गर्जना असत्य और हिंसा के बादलों को __ पूज्य श्री पृथ्वीचन्दजी महाराज ने सं० १६५६ में छिन्न-भिन्न कर देती है। जड़ पूजा के आप प्रखर पूज्य श्री मोतोरामजी महाराज के पास में पंच महाव्रत विरोधी हैं ।
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