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जैन श्रमण सौरभ
- मुनिराज श्री पूर्णचन्दजी म. [पंजाबी] दूज बुधबार को रठाल [ जिला रोहतक ] में भगवती
दीक्षा ग्रहण की।
दीक्षा लेकर पांच छः वर्ष तक शास्त्राभ्यास किया । सन् १९५० में कुराली नामक कस्बा में स्वतंत्र रूप से छाने २ चतुर्मास किया। इससे पूर्व यहां जैन मुनियों का चतुर्मास नहीं हुआ था। महाराज श्री के सदुपदेश से अजैन लोग जैन धर्म को स्वीकार करने लगे। परिणाम स्वरूप इस गांव में नाम मात्र के जैन होने पर भी नये धर्म प्रेमियों ने स्थानक के लिए जमीन खरीद ली। इस प्रकार महाराज श्री की कृपा से एक नया क्षेत्र तैयार हुआ। श्री वुडलाड़ा मण्डी में भी आपही के उपदेशों से स्थानक का जीर्णोद्धार
हुआ। १६५२ का चातुर्मास मनसा मंडी में हुआ। वाणी भूषण, प्रसिद्ध वक्ता श्री पूर्णचन्दजी म० यहां जैन गर्ल्स हाई स्कूल चल रहा है । जिसकी आर्थिक का जन्म दिन ७ अगस्त मन् १६०७ को बड़ौत, जिला अवस्था सुधारने का श्रेय भी आप श्री को ही है। मेरठ (यू०पी०) में लाला वैजनाथसहाय स्थानक ६०-७० हजार की लागत से तीन मंजिल का स्थानक वासी जैन के यहां हुआ। इनकी मातेश्वरी श्रीमति तैयार करवाया । मंडी में यह धर्म स्थानक अपनी तरह दमयंती देवी नौ वष की अवस्था में हो काल-कवलित का एक ही है। हो गई थी। इनका अग्रवाल जाति गोत्र गर्ग सम्पन्न १६५४ में बरनाला चतुर्मास में आप श्री की परिवार से सम्बन्ध है । २१ वर्ष की तरुण अवस्था सत्प्रेरणा से ही १६ हजार रु० स्थानक के लिए में पिताजी का भी देहान्त हो गया। पिता के देहा- मकान और १० हजार रु० नकद दान हुआ । भदौड़ वसान के बाद आप देहली में आढ़त की दुकान छोटे कस्बे में भी स्थानक के लिए जमीन और = करने लगे । व्यवसाय में खूब कमाया और खुब दिल हजार रु० इकट्टा हुआ । सामाजिक कार्यों में महाराज खोल कर खर्चा भी किया। उनके कहने के अनुसार की दिलचस्पी हमेशा से रही है । पटियाला विरादरी जवानी का काफी भाग अल्हड़पन में बिताया । परंतु के सामाजिक कार्य कुछ अधूरे से थे उनको पूर्ण यकायक आपके जीवन में महान् परिवळन हुआ। कराये । अम्बाला शहर में २५ हजार रु० की लागत दिल्ली में पूज्य चरित्र चूडामणी, श्री मोहरा- से एक भवन तैयार हुआ। जिसमें इस समय पूज्य सिंहजी महाराज [श्री मयारामजी महाराज के श्री काशीराम जैन गर्ल्स हाई स्कूल चल रहा है । म०
आज्ञानुवत] का पर्दापण हुआ। आपके सम्पर्क से आप श्री की कृपा से इस स्कूल की सहायता के लिए २० में वैराग्य भावना जागी और सं० १६६८ जेष्ठ सुदी हजार रु० नकद दान प्राप्त हुए। १६५६ का चातुर्मास