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जैन अमण-सौरभ
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प्राचार्य श्री पूज्य श्री जिन विजय सेन सरिजी, दिल्ली
आप खरतर गच्छीय भट्टारक श्री रंग मरि शाखा सेन सूरि जी के नाम से प्रख्यात हुए । लखनऊ गादी के वर्तमान पट्ट घर आचार्य हैं। रंग कुछ दिन पश्चात् श्री पूज्य श्री जिनविजय सेन मूरि शाखा की उत्पत्ति के सम्बन्ध में पृष्ठ १०६-१० सूरि ने यतियों के साथ अजमेर की यात्रा की। वहाँ पर लिखा जा चुका है।
दादागुरू श्री जिनदत्त सूरिजी के दर्शनादि से निवृत प्राचार्य मी जिनरत्न सूरिजी के शिष्य श्री जिन
होकर लाखन कोठरी अजमेर के उपाश्रय में पधारे विजय सेन मुरिजी हुए। प्रापका जन्म उदयपुर
यह उपाश्रय परम्परागत मापके गुरूदेव श्री जिनरत्न (मेवाड़) प्रान्त के ओसवाल वंश में हुआ। आपका
मूरिजी के अधिकार में था, पर अब उपेक्षा के कारण मूल नाम मोतीलाल था। पापके पिता का नाम
एक रतन लाल चोपड़ा नामक व्यक्ति के प्रबन्ध में हरषचन्द और माता का नाम रूपा देवी था। जयपुर
प्रागया था। उन्होंने श्री पूज्य जी के प्रवेश में निवास: सेठ गणेशलाल जी श्रीमाल वैराठी की
आपत्ति-पूर्वक बाधा डाली। किन्तु वे यतिवर्य श्री प्ररेणा और उदयपुर के यति श्री सूर्यमल जी के
रामपाल जी जैसे मन्त्र शास्त्री के चमत्कारिक प्रभाव प्रबल प्रभाव से माता पिता ने ४ वर्ष की अवस्था में
से मातंकित होकर नत-मस्तक हो गये और वहाँ के ही इन्हें समर्पित कर दिया। ये उन्हें श्रीपूज्य श्री
उपासनादि कार्य तथा विधि सम्पन्न कराये। अजमेर
से श्री पूज्य जी दिल्ली पधारे। यहाँ कटरा खुशहाल जिन रत्न सूरिजी के पास जयपुर ले आये। कुछ समय तक आपका लालन-पालन वैराठी जी के घर
राय में जैन पोसाल में पहला चौमासा किया। चार
चौमासे फिर जयपुर में ही किये । सरलता, सौजन्यता, पर जयपनों ही हुआ और तदनन्तर आप की दीक्षा
सदाचार, सौभ्यभाव आपके विशिष्ट गुण है। प्राचीन शिक्षा यतिवयं श्री सूर्यमल जी की छत्रछाया में सम्पन्न
तत्वों का संरक्षण, नवीन तथ्यों का संग्रह और प्राचार्य श्री जिन रस्न सरिजी के स्वर्गवास के सम्वर्धन, जैन सस्कृति और स्थापत्य कला के प्रतीक पश्चात् मोतीलालजा का उत्तरदायित्व श्री समलजी मदिरों का जीर्णोद्धार, शिला लेखों का अन्वेषण, जी पर ही रहा। किन्तु दुर्भाग्यवश यति श्री सूर्यमलजी सुधार-सम्मेलन, धार्मिक उत्सव आदि कार्य पापके भापके गण नायक बनाने के पूर्व ही स्वर्गस्थ हो स्वर
. स्वभाव में श्रोत प्रोत से हो गये हैं हाँ एक पात गये।
अवश्य कहनी पड़ती है कि यतिप्रवर श्री रामपाल जी __ जयपुर स्थान के संचालक यतिराज श्री रतनलाल जैसे कर्मवीर के सहयोग ने आप में चार चाँद और जी और उन्हीं के शिष्य दिल्ली स्थान के संचालक लगा दिया।
लगा दिये है। यतिवर श्री रामपाल जी धर्म दिवाकर विद्या भषण वि. सं० २००३ पासाद सुदि १० मो को पर शाखा का सारा भार भा पड़ा। श्री संघ इन दोनों मालपुरा में दादाजी के मंदिर में ध्वज दण्ड प्रतिष्ठा सेनानियों का अनुगामी हुआ। लखनऊ में वि० सं० तया दादाजी की छत्री (स्मारक) की प्रतिष्ठा १९६८ वैसाख शु. ५ को श्री मोतीलाल जी की दीक्षा कराई । वि० सं० २०११ मार्ग शीर्ष शु. १३ बुधवार हुई और दो ही दिन पश्चात् सप्तमी को पट्टाभिषेक को नौघरा दिल्ली के मंदिर की ध्वज एण्ड प्रविष्ठा महा-महोत्सव बड़ी धूमधाम के साथ हुभा । कराई । वि० सं० २०१२ वैसाख शु०७ मी कोणी पट्टाभिषेक के पश्चात् मोतीलाल जी श्री जिन विजय- नवीन सिद्धाचल तीर्थ की प्रतिष्ठा कराई। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
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