Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 220
________________ २२० जैन श्रमण संघ का इतिहास यह तीर्थ दिल्ली निवासी सेठ बब्बूमलनी समान प्रयास रहा। पाप ही इस सम्मेलन के प्रथम भंसाली और उनके सुपुत्र इन्द्रचन्दजी का बनाया प्रधान थे। हुआ है। आप काम्पिल्यपुर ( कम्पिला पुरी) में श्री नन्दी आपकी दिनांक ४-१२-५४ को भारत के प्रधान वर्धन सरि जी की प्रेरणा से बनवाये हुए श्री विमल मंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू जी से यतिवर्ग के साथ नाथ स्वामी के मंदिर का जीर्णोद्धार करा रहे हैं। सादर भेंट हुई। प्रधान मन्त्री ने आपके पूर्वजों को वहाँ पर प्रति वर्ष चैत्र कृष्णा ७ मी से यात्रा मेला, दिया हुआ अकबर सम्राट का फर्मान ( आज्ञा पत्र) महोत्सव का भी आयोजन आपने कराया है। इसमें जो आपके पास अबतक सुरक्षित है तथा जहाँगीर दिल्ली वाले सेठ मिठूमल जी और तत्पुत्र जवाहर श्रादि के अन्य फरमान भी सुरक्षित हैं, देखकर लाल जी राक्यान श्रीमाल का विषेश हाथ है। प्रसन्नता व्यक्त की। इसमें जैन धर्म के पवित्र दिनों आपके आज्ञामें वर्तमान में निम्न यतिवर्ग है-यति श्री में जीवहिंसा-निषेध की साम्राज्य भर के लिये घोषणा प्यारेलालजी दिल्ली, रामपालजी डालचंदजी उदयपुर है। फाल्गुण शु०५ मी वि० सं० २०१२ दिनांक ज्ञानचंदनी अजीमगंज, यति श्री चंद्रिका प्रसादजी १७-३-५६ को आपने "अखिल भारतीय जैन यति । गौतमचंदजी आदि । जी परिषद" की स्थापना कराई। जिसमें बीकानेर के श्री पूज्य श्री जिन विजयेन्द्र सरिजी और जयपुर के श्री आप श्री के ही पूर्ण प्रयास से जैन रत्नसार पूज्य श्री जिन धरणीन्द्र सरिजी का भी आपही के ग्रन्थ का प्रकाशन हुआ है। श्राचार्य श्री पूज्य श्री जिन विजयेन्द्रसूरिजी महाराज, बीकानेर आप श्री बीकानेर खरतर गच्छोय वृहत भट्टारक शुक्ला दशमी को श्री संघ कृत नंदी महोत्सव पूर्वक गद्दी की सूर परम्परा में भगवान महावीर स्वामी से बीकानेर नरेश द्वारा आपको आचार्य पद-गच्छेश खरतर विरूद प्राप्तकर्ता आचार्य श्री जिन वर्धमान पद से विभूषित किया। बाद में आपश्री बीकानेर से सरि ३६३ पट्ट पर थे; उन वर्धमान सरि के बीकानेर अजीमगंज, जियागंज, भागलपुर, कलकता, नागपुर, गही के श्राप ३८ वें पट्टधर हैं । रा.पुर, बम्बई, कलिंगपोल, कुचविहार, दीमहट्टा,दारश्री जिनचारित्र सूरिजी म० के पाट पर आचार्य जिलींग, फतेहपुर, राजगढ़, चूरू, .यपुर,उदयपुर,रतलाम, हुये। वर्तमान आचार्य श्री जिनविजयेन्द्र सूरिजी ही उज्जेन, इन्दौर,वनारस,सरत,खंभात, धमतरी,भोपावर, म० का जन्म सं० १८७२ में काठियावाड़ भावनगरा। हैदराबाद, सिकोंग आदि आदि नगरों में आपने सन्न गांव में मान गांवी गोत्रीय श्री कल्याणचन्द्र अपनी मधुर शैली से भव्य जीवों को उपदेश देते जी सा. की धर्मपत्नी श्रीमति विमल (दिवाली) देवी हुए मोक्ष मार्ग के पथिक बनाया । इस साल सं० की कुक्षी रत्न से आपका जन्म हुआ। आपका २०१५ का चौमासा बापका इन्दौर शहर में होने से जन्म नाम विजयलाल (विजयचन्द भी कहते थे ) ___ जनता में प्रेम भाव एवं श्रद्धा भक्ति इतनी है कि था। सं० १९८७ बैशाख शुक्ला सप्तमी के दिन अपने माना बड़े से बड़े प्राचार्य की हो। इस से सहस्त्रगणा मालपुरा ग्राम में क्षेमधाड़ शाखीय महोपाध्याय शिव- भाव भक्ति आप श्री के व्याख्यान द्वारा बनो है। आप चन्दजी गणी की परम्परा के अन्तर्गत उपा० श्री में प्रसन्नमुख रह महान गंभीरता रखनेका अद्वितीय गुण श्यामलाल जी गर्माण के पास आपने दीक्षा ली। आपका है । क्रोधमान कषाय आपके जीवन में कतई नहीं है। दीक्षा नाम विन्यपाल रक्खा । सं० १६६८ माघ यथा नाम तथा गुण आप श्री में प्राप्त होते हैं। Shree Sudhamaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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