Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 200
________________ जैन श्रमण संघ का इतिहास भगीरथ प्रयत्न से वहां का विरोधी वर्ग भी अपने ने रक्खी और महाराज श्री की प्रेरणा से कालेज के दोषों पर लज्जित हुआ और वह विरोध भावना छोड़ लिये ५१०००) रुपये दान दिये हैं। श्री नानक कर महाराज श्री की शरण में आगया। मतानुयायी उदासी महन्त श्री अमरदासजी ने ४००००). __महाराज श्री की धीरता का दूसरा उदाहण रुपये के मूल्य की सम्पति मुनिजी की प्रेरणा से १६५८ ई० में जगराओं नगर का है जहां के नर नारी कालेज के लिये दी है। अन्यान्य लोगों ने भी म० धर्म के भेद भाव को भुला कर महाराज श्री के व्या- श्री की प्ररणा से अधिक से अधिक मात्रा में कालेज ख्यान में आते हैं। महाराज श्री के साथ स्नेह करते के लिये दान देकर अपने हृदय का स्नेह प्रकट किया हैं। यहाँ कालेज के अभाव के कारण जनता को जो है। इस समय तक तीन लाख रुपये इकठ्ठ हो गये कष्ट हो रहा था उसको दूर करने के लिये महाराज हैं। और निकट भविष्य में छे लाख रुपये इकट्ठ श्री ने 'सन्मति जनता कालेज' की स्थापना की है होने की आशा है । महाराज श्री के वचनों पर यहां जिसकी आधारशिला सरदार लछमनसिंहजी गिल की जनता मन्त्र-मुग्ध सी है। FRam प्राचार्य पूज्य श्री रघनाथजी महाराज आपका जन्म सं० १९२४ मिंगसिर कृष्णा १० को ग्राम डाबला (राजस्थानखेतड़ी निकट ) हुअा था स्वामी वंशोत्पन्न पं० बलदेवसहायजी श्राप के पिताजी थे श्रापकी मातुश्रीजी का नाम केसर देवी था। आपके एक छोटी बहन थी जिनका नाम । श्री गोरांदेवोजी था। इन्होंने घोर तपस्वी आचार्य पूज्य श्री मनोहरदासजी महाराज की सम्प्रदाय की साध्वी जैनार्या श्री सोनादेवीजी के समीप वि० संवत् १६४० पोष मास में दीक्षा ग्रहण की थी। बाल्यावस्था में आपके पिताजी का स्वर्गवास हो जाने से आपकी मातु श्री जी सिंघाणा (खेतडी) रहने लगो किन्तु यहां आने पर माताजी का भी स्वर्गवास होगया अब आप बहन भाई मामा मंगलचन्दजी के पास रहने लगे। यहां पर एक बार पूज्य श्री मनोहरदासजी महाराज की सम्प्रदाय के आ. श्री मंगलसेन जी म० का पदार्पण हुआ। आपके उपदेशामृत ने दोनों भाई बहिनों को वैराग्यवान बनाया । और पांच वर्षे वैराग्यावस्था में रहकर सं० १६३६ फाल्गुण कृष्णा १० को श्री जैनाचायाज्यं । रघुनाथजीमहाराज Shree Sucharmeswari Gvanbhandar-Umara Surat www.umaragyanbhandar.com

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