Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 216
________________ २१६ जैन श्रमण संघ का इतिहास श्री जयवन्त श्रीजी महाराज श्री हेमश्रीजी महाराज सं० नाम जेठीबाई। जन्म संवत् १६४० पोष आपका जन्म चाडी (मारवाड़) में श्री किशनलाल कृष्णा १० फलोदी। पिता फूलचन्द्रजी वैद माता श्री जी संचेती । (ोसवाल) के घर माता अगरोबाई की अंगारकंबरवाई (चौथीबाई)। पोसवाल गोलेच्छा। कुक्षी से हवा । आपने २१ वर्ष की अवस्था में सं० दीक्षा सं० १९६४ माघ शुक्ला । श्रीमती गुरुणीजी १६६२ अषाढ़ सुद ३ को श्री पवित्रश्रीजी की देशना श्री लक्ष्मी श्रीजी म. सा० को आप सुशिष्या हैं। से लोहावट में दीक्षा अंगीकार की।। आपने २४ वर्ष की वय में निजपुत्री के साथ चारित्र बाल ब्रहमचारिणी दिव्यप्रभाश्रीजी महाराज रत्न स्वीकार किया । आप का जीवन सेवाभावी त्याग - आपका जन्म सं० १६६६ का मिंगसर सुद ११ तप से भरपूर है। को ( मोसवाल ) भंसाली मेघराजजी के घर माता विदषीरत्न श्री प्रमोदश्री जी महाराज मूलीबाई की कुक्षी से लोहावट ग्राम में हुवा। आप विदुषी आर्यारत्न बाल ब्रह्मचारिणी “उज्जैन" बचपन से ही धर्मानुरागी रहीं । १० वर्ष की अवस्था अवन्तिका नगरी तीर्थ श्री शान्तिनाथ मन्दिर जी में सं०२००६ मिगसर सुद ११ को आपका लोहावट द्धार कारिका साध्वी श्रेष्ठा श्रीमति प्रमोद श्रीजी म० में दिक्षा संस्कार हुआ और आप महाराज श्री पवित्र का सांसारिक नाम लक्ष्मीकुमारी (लालोंबाई) था । जन्म श्रीजी की शिष्या बनी। सं० १६५५ कार्तिक शुक्ला ५ जन्म स्थान पलड़म। महासति श्री नेनाजी महाराज पिता सूरजमलजी गोलेच्छा माता जेठीबाई । दीक्षा आपका जन्म हरसोलाव (मारवाड़ ) में हुआ। सं० १६६४ माघ सुदी ५ स्थान फलोदी । आप गुरु पिता श्री चुन्नीलालजी चोपड़ा। माता गुरगाबाई । वर्या शिव श्रीजी म. सा० की शिष्या है। ज्ञानदान पति का नाम श्री कुनणमलजी ओस्तवाल । दीक्षा सं० दात्री गु०पू० श्रीमति विदुषी विमला श्रीजी म. सा० ११८० में बड़ल में हुई। का भारी उपकार है। आप श्रीने व्याकरण काव्य महा सति श्री अमरकंवरजी म. कोष, न्याय, अलंकारादि और सिद्धान्त विषय में गहनज्ञान प्राप्त किया है। आपश्री के सदुपदेश से __ जन्म सं० १९६० महावदी ४ किशनगढ़। पिता जैन कन्या पाठशालायें उद्यापन प्रतिष्ठा आदि अनेक श्री हीरालालजी बोहरा माताधापूबाई। पति का नाम शुभकार्य हुए हैं। कई संस्थाओं को श्राप श्री से श्री मगराजजी बरमेचा। दीक्षा किशनगढ़ में सं.१९६३ सहयोग मिलता ही रहता है। आपकी शिष्याओं में महावदी १३ को हुई । आप महान विभूति हैं। श्री चम्पक श्रीजी, राजेन्द्रश्रीजी, प्रकाशश्रीजी, पारस __ महा सति श्रीउमरावकंवरजी म. श्रीजी चन्द्रयशा श्रीजी, चन्द्रोदयश्रीजी, कोमल श्रीजी आपका जन्म पिपाड़ ( मारवाड़) में सं० १९६७ आदि हैं । सभी विदुषी हैं। को हुथा। पिता कनकमलजी भडारी। माता छोटीश्री पवित्र श्री महाराज बाई । पतिका नाम श्री माणकचन्दजी सिंघी था । आपका जन्म सं० १६५७ में सोमेसर (मारवाड़) दीक्षा सं० २००२ जेठ वदी ७ को जोधपुर में हुई। में श्री सूरजमलजी दूगड़ ओसवाल के यहाँ माडुबाई आपने एक सुसम्पन्न घर में जन्म लिया तथा सम्पन्न की कुक्षी से हुआ। नाम रायकंबरी रक्खा गया। घर में ही ब्याही पर यह सब रिद्धी छोड़ संयम मार्ग में प्रवृतित हैं। सं० १९७५ की वैशाख सुद १० को लोहावट में दिक्षा अंगीकार की एवं श्री पुण्यश्रीजी महाराज की शिष्या महा सति श्री राजकंवरजी म. बनी। आपने पालीताणा में सं.१९८२ में मासक्षमण ___ आपका जन्म सं० १९८१ में मिरजापुर में हुआ। किया । एवं १८-१६-१५-११-६ उपवास आदि किये। पिता श्री सुलतानमलजी मूथा, माता उमरावबाई । आपके दिव्य प्रभा श्रीजी एक विनोद श्रीजी नामक पति का नाम श्री रूपचन्दजी सुराणा। दीक्षा सं० शिष्याएं हैं। २०१२ कार्तिक शु० १० को अजमेर में हुई। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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