Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 206
________________ २०६ जैन श्रमण संघ का इतिहास स्व. जैनाचार्य श्री अमरसिंहजी म० ( मारवाड़ी) और उनकी परम्परा __जैनाचार्य श्री अमरसिंहजी म० की जन्म भूमि भी संयम लिया। आप जैन दर्शन के विद्वान, देहली है । पिता देवीसिंहजी ओसवाल तातेड़ । माता प्रकृति के भद्र और सरल स्वभावी महापुरुष थे। सं० कमलावती । जन्म सं० १७१६ आसोज सुदी १४। २०१३ में कार्तिक सुदी १४ के दिन जयपुर में स्वर्गपूज्य श्री जीवराज जी म. सर्व प्रथम स्थानकवासी वास पधारे । आप श्री के पांच शिष्य हुए । नाम-मंत्री जैनधर्म के क्रियोद्वारक हुए हैं । आपके कई शिष्य मुनि श्री पुष्कर मुनिजी म०, श्री हीरा मुनिजी, हुए थे, उनमें श्रीलालचन्द्रजी म० प्रमुख थे। लालचन्द्र साहित्य रत्न श्री देवेन्द्र मुनिजी, साहित्य रत्न, श्री जी म० के सुशिष्य पूज्य श्री अमरसिंहजी म. हुए गणेश मुनिजी म० तथा श्री भेरुमुनिजी म.। है जिनके नाम से सम्प्रदाय प्रसिद्ध हैं । अापने श्री श्री भेरुमुनिजी म० मदार के निवासी बासठ वर्ष लालचन्द्रजी म० के समीप सं० १७४१ में दोक्षा ली, की उम्र में दीक्षित हुए । जयपुर में स्वर्गवास हुआ। दीक्षा स्थल देहली। सं० १७६१ में अमृतसर पंजाब श्री हीरा मुनिजी म०-आपका जन्म स्थान वास में यवाचार्य पद प्राप्त किया। आचार्य पद देहली में मादड़ा (आबू)। जाति क्षत्रिय । पिता पवतसिंहजी । हुआ। माता चुन्नीबाई । दीक्षा सं.१६६५ पोषसुद ५ । अध्ययन . जोधपुर के दीवान खेमसिंहजी भन्डारी देहली हिन्दी साहित्य और संस्कृत मध्यमा, धार्मिक प्रभाकर । में आपके उपदेश से प्रभावित हुये। फिर आपको आप श्री ने गुरु महाराज श्री ताराचन्द्रजी म० का भन्डारीजी मारवाड़ में लिवा लाये । जोधपुर, पाली, २७५ पृष्ठ में जीवन चरित्र लिखा है। सोजत आदि अनेक क्षेत्रों में जैन यतियों से शास्त्रार्थ साहित्य रत्न श्री देवेन्द्रमनिजी महाराज किया और सर्व प्रथम स्थानकवासी जैनों का झन्डा । झन्डा आपकी जन्म भूमि उदयपुर है । सं० १६४७ चैत्र सुद . आप ही ने मारवाड़ में स्थापित किया। ३ के दिन संडप (मारवाड) में दीक्षा ली । आप हिन्दी आपके पाट पर २ श्री तुलसीदासजी म०, ३ श्री १ ला में साहित्य रत्न एवं संस्कृत के अच्छे विद्वान हैं। जीतमलजी म. ४ श्रीज्ञानमलजी म. ५ श्रीपूनमचन्दजी लेखन शैली सुरम्य है। आपकी माता तथा बहिन म. ६ श्री जेठमलजी म. ७ महा स्थाविर श्री ताराचद भी दीक्षित हैं। आपकी जाति ओसवाल वरड़िया है जी म० हुए हैं। पिता जीवनसिंहजी वरडिया। माता प्रभाती बाई । स्व० श्री ताराचन्दजी म०-महास्थविर श्री , " साहित्य रत्न श्री गणेशमुनिजी आपकी जन्म भूमि ताराचन्द्रजी म० का जन्म स्थान बम्बोरा मेवाड़ है। वागपुरा ( मेवाड़) है। आपकी मातेश्वरी तीजबाई ने भआपके पिता का नाम शिवलाल जी गुन्देचा ओसवान भी संजम लिया है दीक्षित नाम प्रेमकुवरजी । आपकी माता ज्ञानकुवरीजी । जन्म सं० १६४० । ६ वर्ष की दीक्षा सं० २००३ में धार (मालवा) में हुई । आपके वय में श्री पूनमचन्द्रजी म० के पास सं० १६५० में पिता लालचन्दजी पोरवाल है। आप हिन्दी साहित्य समदडी (मारवाड़) में दीक्षाली । आपश्री की माता ने रत्न पास हैं और अच्छे कवि तथा प्रवचनकार हैं। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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