Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 207
________________ जैन श्रमण-सौरभ २०७ मुनि श्री संतवालजी 'संतबाल' ही लिखते रहे और उसी नाम से प्रसिद्ध हैं। गुरुजी के पास ८ वर्ष तक रहे पर आपको ऐसा लगा कि अभी विकास अधूरा है अतः आप गुरुजी की आज्ञा ले नर्मदा नदी के किनारे बड़ौदा जिले के राणापुर ग्राम में एक वर्ष तक एकान्तवास और मौनी रहे । इस समय आपने दुनियां के हर धर्म का गहन अध्ययन किया। साथ ही न्याय, व्याकरण तथा साहित्य का अनुशीलन भी किया। ऐसे एकान्त चिन्तनशील जीवन ने आपके जीवन प्रवाह को ही एक विशेष क्रान्ति मार्ग की ओर मोड़ दिया आपने तत्कालीन धर्म के बाह्य स्वरूप एवं व्यवहार में परिवर्तन की आवश्यकता अनुभव की और इस सम्बन्ध में एक निवेदन भी प्रकाशित किया। पर समाज उसे पचा न सका और आप सम्प्रदाय से बहिष्कृत किये गये। मौन एकान्त के पश्चात अपने महसूस किया कि केवल युगानुकूल उद्दश्य बनाकर काम नहीं चलेगा साथ ही व्यवहार शुद्धि के प्रयोग भी चलने आपका संसारी नाम शिवलाल था। पिता का चाहिये । आपने डॉ. मेघाणी का 'आदश समाजवाद' नाम नागनभाई और माता का मोतीवाई। बीसा पुस्तक की प्रस्तावना लिखी। इसमें धर्म की दृष्टि से श्रीमाली दोशी गौत्र । पिता का बाल्यकाल में देहान्त समाज रचना के बारे में कुछ बातें आपने लिखी हैं। होगया। माता से आपको धार्मिक संस्कार विरासत में आपने अव से साम्प्रदायिकता की चार दिवारी मिले । अध्ययन के बाद बम्बई में नौकरी की। उस से बाहर निकल कर समूचे राष्ट्र को अपना सेवा सस्ते जमाने में २०० रु० मासिक मिलते थे बाद में क्षेत्र बनाया। गुजरात के नालकांठा आदि कई प्रदेशां एक पारसी सज्जन के साथ साझे में लकड़ी का में घूम घूम कर समाज सुधार का प्रयत्न किया । कई व्यापार किया। आपका अधिकांश भाग दसरों की स्थानों पर कन्या विक्रय, वर विक्रय, फिजूल खची, सहायता आदि में जाता था । प्रारम्भ से ही वैराग्य गंदे गीत गाना, दिखावा आदि की बुराइयाँ बता कर भावना प्रबलवती रही। इस मार्ग से हटाने के लिये इनको रोकने हेतु पंचायती नियम बनवाये । इसी माता ने इनकी सगाई करदी। किन्तु एक बार आप प्रकार कई लोगों से मांसाहार छुडवाया। अपनी मंगेतर के यहाँ गये और उसे बहिन रूप में भाल-नाल प्रदेश में पानी की बडी मुश्किलें थीं। सम्बोधित कर एक साड़ी उपहार में दे आये । इस यह प्रदेश बिलकुल निर्जल था । थोडी बहुत मात्रा में प्रकार सांसारिक उलझन का एक फंदा काट दिया। मीठा जल उपलब्ध था उस पर कड़े निबन्ध थे। आपका विशेष समय अध्ययन और चिन्तन में मुनिश्रीजी ने वहाँ जल सहायक समिति' की स्थापना ही बीतता था। गांधी साहित्य का प्रभाव विशेष रहा। की और आज तक इस समिति के मातहत लाखों कुछ दिनों बाद आप पूज्य श्री नानचंदजी म० के संपर्क रुपये खर्च कर तालाब, कुए, नहरें आदि की निर्मिती में आये और २४ वर्ष की अवस्था में उन्हीं के पास की गई है। अब यह प्रदेश पानी की दृष्टि से समृद्ध दीक्षित होगये। दीक्षा नाम सौभाग्य चन्द्र है पर श्राप हो गया है।

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