Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 195
________________ जैन श्रमण-सौरभ १६५ स्वामी श्री जौहरीलालजी महाराज मुनि श्री खजानचन्दजी महाराज पूज्य श्री अमरसिंहजी म. की आम्नाय के मुनिराज आगरा (यू. पी०) निवासी ओसवाल स्थानक वासी जैन लाल चाँदमल जो सा० चौरडिया, के सुपुत्र श्री खजानचन्दजी म० का जन्म १९६१ वि० में "तपस्वी श्री लाला प्यारेलालजी" के जेष्ट पुत्र चि० आबुपुर (मेरठ) में हुआ । पिता का नाम श्री भोलाराम जौहरीलालजी का जन्म आगरा जौहरी बाजार में जी तथा माता का नाम शिवदेवी है । जाति छीपा । वि० सं० १६७३ मिगसर वदी एकम को "माता श्री दीक्षा १६६० माडो अहमदगढ़ (पंजाब) में हुई। मुन्नाबाई" की कुक्षी से हुआ। - दीक्षा गुरु श्री दौलतराजी म०। अजमेर साधु सम्मेलव के एक साल बाद हो वि० सं० १६६१ को पंजाब केशरी आचार्य श्री काशिरामजी भाप बहुत ही भद्र सरल एवं सेवाभावी संत हैं । म० के आगरा चातुर्मास में आपको वैराग्य उत्पन्न सदा प्रसन्न रहना भी आपकी एक खास विशेषता है। हुआ और आपके पास ही सं० १६६२ मिंगसर सुदी सदा पठन पाठन में लगे रहते हैं। आपका वैराग्य से ११ को बामनौली (यू० पी० ) में धूम धाम से जैन भरा जीवन प्रशंसनीय-सराहनीय है। श्रमण दीक्षा अंगीकार की। आपने पूज्य गुरुदेव स्थविर श्री कुन्दनलालजी म० पंजाब केसरी आचार्य श्री काशीरामजी म. के साथ मारवाड़, मेवाड़, खानदेश, बम्बई प्रान्त, गजरात. पू. श्री अमरसिंहजी म० की सं.। जन्म अषाढ़वदि ११ काठिया वाड़ा दि देशों में विचरण, करते हुए शास्त्रा- सं० १६३३ जन्मस्थान बस्सी (सरहिन्द) पिता श्रीमान ध्ययन किया। आपके प्रभावक भाषणों से उगाला सा० निहाल चन्दजी माता श्रीमति द्रौपदीदेवी। जाति शाहकोट, जालन्धर कैन्ट में विशेष धर्म जाग्रति हुई अग्रवाल । दीक्षा १६६८ पोह । गुरु श्री नारायणदास तथा वनूड़ में जैन कन्या पाठशाला चल रही है। जी महाराज। ____आप पंजाब प्रान्त मंत्री पं० रत्न श्री शुक्लचन्द आप एक अत्यन्त भद्र, एवं तपस्वी सन्त हैं। जी म० के शिष्य हैं। सर्वदा शास्त्र स्वाध्याय में लगे रहते हैं।

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