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जैन श्रमण-सौरभ
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उपाध्याय श्री हस्तीमलजी महाराज गंभीरता और चारित्र शीलता आदि गुणों से आकृष्ट
होकर समाज ने सं० १९८७ में बड़ी धूमधाम और मध्यम कद, उन्नत ललाट, चमकती आंखें,
उल्लास से जोधपुर नगर में आपको आचार्यपद से ओजपूर्ण मुखमंडल, साधनारत शरीर, तपःपूत
अलंकृत किया। इतना कम उम्र में संभव ही कोई मानस, गंभीर विचार, सुदृढ़ आचार, गुण प्राहिणी भावना और अहर्निश स्वाध्याय निरत मस्तिष्क वाले
प्राचार्य जेसे गुरुतर पद प्राप्तकर, उसके दायित्व को
इस अनूठे ढंग से निभाए होंगे जैसा कि आपने आज के उपाध्याय श्री हस्तीमलजी महाराज का जन्म
निभाया। पोपसुदि १४ सं० १६६७ में मरुधरा के ख्याति प्राप्त
____ श्राचार्य पद ग्रहण के बाद कुछ वर्षों तक नगर पीपाड़ में हुआ।
मारवाड़, मेवाड़ और मालव भूमि में वर्षावास करते आपके पिता का नाम सेठ केवलचन्द जो और
एवं ज्ञान सुरभि फैलाते हुए पुनः सुदूर दक्खिन
जान माभि फैलाते हुए पन:: मातेश्वरी का रूपादेवी था। आप ओसवाल जातीय
महाराष्ट्र की ओर चल पड़े। यह समय आपके आज बोहग वंश को अलंकृत करते थे। बाल्यकाल में ही तक के जीवन वृत्त का उमंग व उत्साह भरा फड़कता आपको पित वियोग रूप दारुण दुःख का सामना
अध्याय कहा जा सकता है जिसमें प्रतिक्षण करना पड़ा और स्नेहमयी जननी की देखरेख में
कुछ करने व आगे बढ़ने की भावना हिलोरें ले रही बचपन के दिन व्यतीत हुए ।
थी। अहमदनगर, सतारा (महाराष्ट्र ) गुलेदगढ़ सांसारिक उलझनों और विषमताओं की कड़वी आदि कर्नाटकीय अपरिचित भूभाग में भी आप बिना चोट से अत्यन्त छोटी उम्र में ही आप में वैराग्य किसी हिचक के अपने मार्ग पर आगे बढ़ते हो रहे भावना सजग हो उठी और केवल दस वर्ष की और निश्चय ही सीमा मंजिल तक पहुंचे बिना नहीं अवस्था में ही आपने रत्न वशीय पूज्य शोभाचन्दजी रहते, कारणवश यदि मरुधरा की ओर मुड़ना नहीं महाराज से सं० १६७७ में अजमेर नगर में दीक्षा पड़ता। प्रहण करली तथा ज्ञान ध्यान संवर्धन में अपने को इस विहार में आपकी शास्त्रानुराग कलिका कुछ सरसर्ग दिया।
प्रस्फुटित हुई और नन्दी सूत्र की टीका इधर ही वर्षों आपने अतिसूक्ष्म दृष्टि से संस्कृत, प्राकृत सम्पादित और चन्दमल बाल मुकुन्द मुथा के साहाय एवं हिन्दी का अभ्यास एकां शास्त्रों का उहापोह से पूना में प्रकाशित हुई । आगे चलकर दशवकालिक, किया, जिससे आपकी बुद्धि विकसित होगयी । श्रमण प्रश्न व्याकरण, वृहत्कल्प सूत्र भी पापसे सम्पादित समाज एवं श्रावक वर्ग में आपके किया निष्ठ पाण्डि- प्रकाशित हुए हैं, जो आपके शास्त्रानुराग के सुरमिपूर्ण त्य की बहुत जल्द धाख जमगई और लोग संस्कृत विकसित सुमन हैं । इसके अतिरिक्त, पदव्य विचार प्राकृत आदि भाषाओं के गहन अभ्यासी ए5 मर्मज्ञ पंचाशिका, नवपद आराधना, सामयिक प्रतिक्रमण के रूप में आपको स्वीकार करने लगे। गुरु निधन सूत्र सार्थ, स्वाध्याय माला प्र० मा., गजेन्द्र मुक्तावली के बाद २० वर्ष की छोटी सी उम्र में आपकी ज्ञान पंचमो, दो बात, पांच बात, महिला बोधिनी
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