Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 189
________________ जैन श्रमण सौरभ पंडित रत्न श्री पन्नालालजी महाराज जाने लगे । अतः आपके हृदय में वैराग्य भावना प्रस्फुटित हुई और वि.सं १६५७ के वैशाख शुक्ला शनिवार के शुभ मुहूर्त में आपने भागवती जैन दीक्षा कालु (आनन्दपुर) में अंगीकार की । आपने त्याग धर्म अपनाने के साथ जीवन को ज्ञानदीपक से आलोकित करने हेतु शास्त्राध्ययन सम्यक प्रकार से करना आरम्भ कर दिया और बुद्धि प्राबल्य से स्वल्प काल में ही लक्षित उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल बने । स्थानकवासी जैन इतिहास में पूज्य श्री नानकराम जी म एक महान् प्रभाविक जैनाचार्य हुए हैं । अजमेर मेरवाड़ा और इसके आस पास के क्षेत्र में श्री की ही सम्प्रदाय के विशेष अनुयायी वर्ग हैं। इस सम्प्रदाय के वर्तमान आचार्य पूज्य श्री पन्नालालजी म सा० है जिन्होंने संघ एक्य के हित चिन्तन से बहुत साधु सम्मेलन सादड़ी में समाज हित में आचार्य पद छोड़कर वर्तमान प्रान्तीय मन्त्री हैं । १८६ जैन समाज में 'स्वाध्याय' प्रवृत्ति द्वारा ज्ञान प्रकाश फैलाने में आपके प्रयत्न सदा अभिनन्दनीय रहेंगे । गुरुवर्य पं० रत्न प्रान्तमंत्री श्री पन्नालालजी म० सा० का संक्षिप्त जीवन परिचय इस प्रकार है: आपका जन्म मारवाड़ डेगाना के पास के तलसर ग्राम में वि० सं० १६४५ के भाद्रपद शुक्ला ३ शनिवार को हुआ | आपके पिता का नाम श्रीबालूराम जी एवं माता का नाम श्रीमती तुलसादेवी था। आपका जन्म मालाकार जाति में हुआ, परन्तु श्रापके परिवार संस्कार जैनधर्म के थे । आपके पिता स्वतंत्र विचारों के व्यक्ति होने के कारण उनमें और स्थानीय ठाकुर सा० में आपसी मनमुटाव हो गया। अतः बाप सपरिवार उस ग्राम को छोड़कर थांवले पधार गये । 1 स्वतंत्र विचार वाले पिता के स्वतंत्र विचारवाला ही पुत्र हुआ । थांवला पधारने पर आपको उत्तम जैनसंत समागम प्राप्त हुआ । एक समय इसी ग्राम में पुण्योदय से मोतीलालजो म० सा० का समागम हुआ। आप नित्य प्रति गुरुवर्य के व्याख्यान आदि में नियमपूर्वक Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat आपका अध्ययन केवल जैनागमों तक ही सीमित नहीं रहा वरन आपने अन्य दर्शनों का भी अच्छा अध्ययन प्राप्त किया। आप प्राकृत भाषा के साथ २ संस्कृत एवं ज्योतिष विद्या के भी प्रकाण्ड विद्वान हैं ! सं० १६८२ के चैत्री पूर्णिमा के लगभग की बात है आप दो ठाणों से भीलवाड़ा पधारते हुए बनेड़ा से सायंकाल बिहार करके बनेड़ा से १|| मील दूर राजकी बाग में पहुँचे। वहां बाग रक्षकों ने बतलाया कि अन्दर के मकान बन्द है और बाहर हिंसक पशु का खतरा है । अतः याप वापिस लौट जाइये । इस पर आपने फरमाया कि हम साधु हैं हमें कोई खतरा नहीं है और बाहर वाले स्थान में दोनों संत ठहर गये । रात्रि के २॥ बजे करीब जब आप स्वाध्याय व चिन्तवन कर रहे थे वही पशु (सिंह) आपके पास या खडा हुआ | आपने उसकी ओर धीरे से संकेत किया और वह वहां से कुछ दूर जंगल में जा खड़ा होगया । यह घटना बतलाती है कि आपका जीवन कितना तेजपूर्ण था । दीक्षा लेने के पश्चात् आपका ध्येय आत्मकल्याक के साथ २ जनता में जैनत्व की भावना जागृत करने www.umaragyanbhandar.com

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