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जैन श्रमण-संघ का इतिहास
का रहा। जैन जाति में प्रविष्ट अनेक कुरूढियों के बन्द करवादी एवं सर्वत्र स्थानीय जन समुदाय ने निवारण हेतु भी आपके प्रभावशाली प्रवचन होते शीलालेख लगवा दिये। इसी प्रकार आपका करुणा रहे। आपके उपदेश केवल जैन समाज तक ही श्रोत अबाध गति से बहता ही चला गया। धनोप सिमित नहीं होते वरन राष्ट्र के सभी वर्गों एवं समाज माता जिनके पुजारी ब्राह्मण हैं फिर भी बली का बोल के व्यक्तियां में होते हैं। पुष्कर के पास गनाहेडा वाना चढा बढा हुआ था। सैंकडों मूक पशुओं की नामक गांव में जहां सैकडों भैंसे की बलि दी जाती प्राणाहुति प्रति वर्ष जहां होती थी। वहाँ नाम मात्र थी वहां आपने पधार कर बलि बन्द के लिये का बाल रह गई है। उपदेश प्रारम्भ किये।
__ यही नहीं राजा महाराजाओं को भी उपदेश द्वारा ___ आपने प्रतिज्ञा की कि 'जब तक यहां बलि अहिसा का स्वरूप समझाया एवं उनकी शिकार प्रथा वन्द नही होजातो है मैं भी इसी प्रकार यहाँ उपवास को बन्द करवाई। एक अहिंसक मार्ग अपनाने के की तपस्या के साथ उपदेश करता रहूँगा। बीसों ठाकुरों व जागीरदारों ने लिखित पट्टे आपके आपको तप करते तीसरा दिन चल रहा था । स्वाभाविक चरणों में सादर समर्पित किये हैं। रूप से आपकी ओजस्विता चढ़ी बढ़ी हुई थी, फिर आपने सं० १९८८ में पाली मारवाडी साधु तप का प्रभाव सोने में सुगन्ध का कार्य कर गया। सम्मेलन में भाग लिया साथ ही वि० सं० १६६० में जोगी पर आपके उपदेशों का वह प्रभाव पड़ा कि
अजमेर में होने वाले वृहत साधु सम्मेलन में भी आपने
. वह बलि बन्द करने की भावना लेकर वहां से चला स्वयं सेवक संचालक के रूप में कार्य किया । वाहर के गया। उसके जाने के पश्चात् वहां के रावत लोगा प्रांतों से पधारने वाले साध समाज के स्वागत करने को समझाया गया कि तुम्हारा गुरु भी बलि देने के
में तत्पर थे। पक्ष में नहीं है यही कारण है जो वह निरुत्तर बन यहां से चला गया है। रावत लोग समझ गये कि
आपमें एक विशेष गुण यह है कि आप जिस वास्तव में मुनिराज का फरमाना ठीक है। हिंसा से आर भी कदम उठाते हैं, वह एक ठोस कदम होता किसी को प्रसन्न नहीं किया जा सकता है तत्काल है। आपके सुधार अल्पकालीन नहीं वरन स्थायी उनलोगों ने यह प्रतिज्ञा करली कि आज से इस माता होते हैं । आपके सदुपदेशों से समाज में निम्न ऐसी की हद में ( सीमा में ) व इसके नाम से किसी भी संस्थाओं का जन्म हुआ है जो अपने पैरों पर खडी प्रकार को हिंसा नहीं करगे। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा होकर स्थानकवासी जैन समान की सेवाएं कर रही का शिलालेख बनाकर माता के मन्दिर पर लगवा दिया एवं उसे सरकार द्वारा रजिस्टर्ड करवा कर सदा श्री नानक श्रावक समिति, बिजयनगर । के लिये वहां बलि का अन्त किया। इसी प्रकार
श्री नानक जैन छात्रालय, गुलाबपुरा । आस पास के गांव चावडिया, तिलोरा आदि स्थानों जैन स्वाध्याय संघ, गुलारपुरा। में होने वाली वली को भी आपने ओजस्वी उपदेशों द्वारा जैन प्राज्ञ पुस्तक भंडार, भिणाय ।
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