Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

View full book text
Previous | Next

Page 192
________________ १६२. जैन श्रमण संघ का इतिहास व्या० वाचस्पति श्री मदनलालजी म० पं० मुनि श्री सुशीलकुमारजी भास्कर आप प्रसिद्ध वक्ता, शास्त्र के मर्मज्ञ और सादड़ी सम्मेलन में शांति रक्षक के रूप में रहे थे "व्याख्यान वाचस्पति" के नाम से समाज में सुपरिचित हैं । आपका तप, साधना, संयम, ज्ञानार्जन और सतत् जागृति का लक्ष्य सर्वथा प्रशंसनीय है । आपने ब्राह्मण जाति में जन्म लिया । बचपन से ही वैराग्य भाव होने से मुनि श्री छोटेलालजा म० सा० के पास दीक्षित हुए। संस्कृत, प्राकृत, हिन्दी आदि का अच्छा अभ्यास करके 'आचार्य' 'भास्कर' आदि अनेक उपाधियाँ प्राप्त की । श्रमण संघ के आप होनहार परमोत्साही युवक सन्त हैं । श्रहिंसा संघ के तथा सर्वधर्म सम्मेलन के आप प्रणेता हैं। हिंसा के अग्रदूत हैं । 'विश्व धर्म सम्मेलन' द्वारा आप अन्तराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त महा मुनि बन चुके हैं। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र में आपका बड़ा सन्माननीय स्थान है । पं० रत्न शुक्लचन्दजी महाराज पं० रत्न शुक्लचन्दजी महाराज ब्राह्मणकुलोत्पन्न विद्वान मुनिराज हैं। पूज्य श्री काशीरामजी महाराज के श्रीचरणों में दीक्षा ग्रहण करके आपने शास्त्रों का गहन अध्ययन किया । श्राप सुकवि और शान्तिप्रिय प्रवचनकार हैं। पहले आप पंजाब सम्प्रदाय के युवाचार्य थे और अब वर्धमान श्रमण संघ के प्रान्त मंत्री हैं। कविवर्य श्री नानचन्दजी महाराज पं० मुनि श्री किशनलालजी महाराज पं० मुनि श्री किशनलालजी महाराज पूज्य श्री ताराचन्द्रजी म० के शिष्य हैं । आपका शास्त्रीय ज्ञान सुविशाल है । कविता के आप रसिक हैं । वस्तु तत्व को सरल और सुबोध बताकर समझाने में आप प्रवीण हैं । आपकी प्रवचनशली बड़ी ही मधुर है । जन्म ब्राह्मण हैं किन्तु जैनधर्म के संस्कार आपमें सहज ही स्फुरायमान हुए हैं। आप श्रमणसंघ के प्रान्तीय मन्त्री हैं । मंत्री श्री पुष्करमुनिजी महाराज पं० मुनि श्री पुष्कर मुनिजी ब्राह्मण जाति के श्रृंगार हैं। आपकी जन्म भूमि नांदेसमा (मेवाड़) है । सं. १६८१ में दीक्षा-संस्कार सम्पन्न हुआ । संस्कृत, प्राकृत आदि भाषाओं का श्रापने मननीय अध्ययन किया है । 'सूरि- काव्य' और 'आचार्य सम्राट् आपकी उल्लेखनीय रचनायें हैं। आप अतिकुशल बक्ता हैं । श्रमण-संघ के प्रान्तीय एवं साहित्य मंत्री है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat कविवर्य की नानचन्दजी महाराज का जन्म वि० सं० १६३४ में सौराष्ट्र के सायला ग्राम में हुआ था । वैवाहिक सम्बन्ध का परित्याग करके आपने दीक्षा ग्रहण की। आप प्रसिद्ध संगीतज्ञ और भावनाशील विद्वान् कवि हैं । आपके सदुपदेश से अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हुई है । पुस्तकालय की स्थापना करने की प्रेरणा देने वाले ज्ञान प्रचारक के रूप में आप प्रसिद्ध है | अजमेर साधु-सम्मेलन के सूत्रधारों में आपका अग्रगण्य स्थान था। आपकी विचारधा अत्यन्त निष्पक्ष और स्वतन्त्र है । "मानवता का माठा जगत् ' आपकी लोकप्रिय कृति है । आप सौराष्ट्र वीर श्रमण संघ के मुख्य प्रवर्तक मुनि हैं । मुनि श्री छोटेलालजी 'सदानन्दो' मुनि श्री छोटालालजी महाराज श्री लाघाजी स्वामा के प्रधान शिष्य हैं । अपने गुरुदेव के नाम से आपने लींबड़ी में एक पुस्तकालय स्थापित कराया है । लेखक और ज्योतिष- वेत्ता के रूप में आप प्रसिद्ध हैं । आपने 'विद्यासागर' के नाम से एक धार्मिक उपन्यास भी लिखा है । आप द्वारा अनुवादित राज - प्रश्नांय सूत्र का गुजराती अनुवाद बहुत ही सुन्दर बन पड़ा है । www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222