Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 186
________________ १८६ जैन श्रमण-सौरभ पद पर विराजमान हुवे और सं० १६१२ माघ कृष्णा के लिये पाथर्डी, अहमदनगर, और धोड़नदी में ६ बुद्धवार के रोज चतुर्विध श्री संघ ने माप श्री जी श्री जैन सिद्वान्तशालाएं स्थापित हैं। इसी प्रकार को पाथर्डी (अहमदनगर) में आचार्य पद पर मासीन धार्मिक शिक्षण को सुव्यवास्थित रूप देने के लिये किया । श्री तिलोक रत्न स्था. जैन धार्मिक परीक्षा बोर्ड पाथर्डी और वर्द्धमान जैन धर्म शिक्षण प्रचारक ___ महाराष्ट्र, निजाम स्टेट, बरार, सी० पी० आदि सभा (पाथर्डी) नाम से दो व्यापक संस्थाएं समाज प्रान्तों में विचरकर आप श्री जी ने समाज में खूब में काम कर रही हैं। इनके सदुपदेशक श्री उपाध्याय जागृति फैलाई। पूज्य श्री जी के सदुपदेश से बहुत जी ही हैं। पाथर्डी की श्री रत्न जैन पुस्तकालय से जैन जैनेतरों ने भी मय मांस तथा कुव्यसनों का जिसमें हस्तलिखित और मुद्रित लगभग १०००० बहु त्याग किया। सं० २००६ चैत्र मास में स्था० जैन मुल्य पुस्तकों का संकलन है । आप श्री की ही प्रेरणा कान्झन्स की योजनानुसार व्यावर में ५ संप्रदायों का का सफल परिणाम है। इनके अलावा तिलोक जैन संघठन हुवा। उस समय पांचों संप्रदायों ने सांप्र. विद्यालय पाथर्डी, श्री जैनधर्म प्रसारक संस्था नागपुर दायिक पदवियों का त्याग करके एक वीर बद्धमान श्री रत्न जैन विद्यालय बोदवड़, श्रीवर्द्धमान जैनछात्रास्था० जैन श्रमण संघ की स्थापना की और उसका लय राणावास श्री महावीर सार्वजनिक वाचनालय संचालन करने के लिये प्रधानाचार्य पद पर श्राप चिचोंडी, श्री वर्तमान स्था. जैन विद्यालय शाजापुर, श्री जी की नियुक्ति की गई । जिसे आपने विधिवत् श्री वर्तमान स्था" जैन विद्यालय शुजालपुर आदि संचालन किया पश्चात् सं० २००६ के वैशाख शुक्ला अनेक संस्थाएं समाज में धार्मिक और व्यवहारिक ३ के दिन सादड़ी में हुए बहत साधु सम्मेलन में शिक्षण देने का काम कर रही हैं। श्री बर्द्धमान स्था० जैन श्रमण संघ की स्थापना हुई। प्रधानमंत्रीत्व का गुरुनम भार आपको ही सौपा उपाध्याय श्री प्यारचन्दजी महाराज गया । सं० २०१२ तक आप श्री ने उस गुरूतम कार्य ___पं० मुनि श्री प्यारचन्दजी महाराज ने अपने को संचालन कर श्रमण संघ की नीव को सुदृढ़ करने का श्रेय प्राप्त किया। सद्गुरु जैन दिवाकर चौथमलजी महाराज के चरणों में एकनिष्ठापूर्वक सेवा समर्पित की। जैनदिवाकरजी अखिल भारतीय श्रमण संघ के भीनासर संमेलन महाराज के प्रवचनों का संपादन आपकी विलक्षण में आपको उपाध्याय पद प्रदान किया गया। वर्तमान प्रतिभा का प्रभाव है। आप साहित्यप्रेमी और सरल में आप उपाध्याय पद पर विराजमान हैं। ज्ञान। प्रचार कार्य में आपका अन्तः करण विशेष रूप से। ववक्ता हैं । सादडी साधु-सम्मेलन में भाप सहमंत्री संलग्न रहता है इसके फलस्वरूप दक्षिण प्रान्त में के रूप में नियुक्त किये गए हैं। भीनासर सम्मेलन विचरने वाले सन्त सती वर्ग के शिक्षण की सुविधा में आप उपाध्याय पद विभूषित किये गये हैं। Shree Sudhammaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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