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जैन श्रमण-सौरभ
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उपाचार्य श्री गणेशीलालजी म. उपाध्याय श्री अानन्द ऋषिजी म. उपाचार्ग पूज्य श्री गणेशीलालजी महाराज सा. का दक्षिण प्रांत में अहमदनगर जिना के अन्तर्गत जन्म सं० १९४७ में मेवाड़ के मुख्य नगर उदयपुर चिचोडी शिराल नाम का एक प्राम है। वही भापकी में हुमा था। अत्यन्त उत्कृष्ट भाव से केवल १६ वर्ष जन्मभूमि है। पिता श्री का नाम सेठ देवीचन्दजी की अवस्था में मापने प्रव्रज्या अंगीकार की। अपने और माताजी का नाम हुलासा बाई जी था । सं० गुरुदेव पूज्य श्री जवाहरलाल जी महाराज मा० की १६५७ के श्रवण मास में आपका शुभ जन्म हुआ। सेवा में रह कर मापने शास्त्रों का गहन अध्ययन बुद्धि कुशाम होने से स्कूली शिक्षण अल्प काल में किया।
हो परिपूर्ण करके धर्मपरायण माताजी को प्राज्ञा सं० २०० में भीनासर में पूज्य श्री जवाहर से महाभाग्यवान पं० श्री रत्नऋषिजी म. के पास लालजो स. सा. के कालधर्म पाने के पश्चात् जैन धार्मिक शिक्षण लेने लगे। आप इस सम्प्रदाय के प्राचार्ग बनाये गये । प्राचार्ग तेरह वर्ण की कोमलवय में आपने सं० १९७० के रूप में आपने बढी हो गोग्यता, दक्षता एवं मार्गशीर्ष शुक्ला नवमी रविवार के दिन पं० श्री सफलता के साथ सम्प्रदाय का संगठन एवं संचालन रनऋषिजी म. के पास मीरी अहमदनगर, में भागकिया ।
वती दीक्षा धारण की। अल्प समय में ही पापने मापकी वैयावच्च वृत्ति, गम्भीरता और सौम्यता व्याकरण, साहित्य, न्याय, विषय के प्रसिद्ध प्रन्यों का स्पृहणीय एवं अनुकरणीय है।
और सटीक जैनागमों का विधिषत अभ्यास किया। भापकी व्याख्यान-शैली बडी ही मधुर, प्राकक साय ही हिन्दी, मराठी, गुजराती आदि प्रान्तीय एवं श्रोताओं के अन्तस्तल को स्पर्श करने वाली है । भाषामों में व्याख्यान देने की क्षमता धारण की ।
आपके विनय और गांभीर्य आदि गुणों से और उर्दू फारसी तथा अंग्रेजी भाषा की जानकारी प्रभावित एवं भाकर्षित होकर सादडी मारवाड में हुए प्राप्त की। 'प्रसिद्धवक्त्ता' और 'पंडित रत्न' के रूप में स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय के बहत साधु सम्मेलन आपकी ख्याति हुई। के समय बाईस सम्प्रदायों ने मिलकर आपको उपा- समाज में ज्ञान का प्रचार हो ऐसी मापकी हार्दिक चार्ग, पद प्रदान किया। जिसकी जवाबदारी सफलता भावना रहती है। आज्ञा में विचरने वाले सन्त पूर्वक निर्वाह करते हुए पाप श्री पाज तक चतुर्विध सतियों को अवसर निकाल कर स्वयं शिषण देने श्री संघ की सेवा कर रहे हैं।
में तत्पर रहते हैं और स्थान पर शिक्षण की व्यवस्था __ भव्य और प्रभावशाली व्यक्तित्व, साधुता के करने के लिये संघ को भी उपदेश देते रहते है। गुणों से सम्पन, नेतृत्व की अपूर्व क्षमता, सरलता शुद्ध चरित्र पालन करने कराने की तरफ मापका लक्ष्य एवं गम्भीरता को सजीव मूर्ति उपाचार्य श्री समाज विशेष रहता है। सं० १६६३ माघ कृष्णा ५ पुषधार को एक विरन विभति है
के दिन भुसावल में ऋषि सम्प्रदाय के युवाचार्य
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