________________
१७२
जैन श्रमण-सौरभ
मेवाड़ केसरी आचार्य श्री हिमाचल सूरीश्वरजी महाराज
आचार्य श्री हिमाचल सूरीश्वरीजी म०
रक्खा गया। सं० १९८५ में पन्यास पद प्रदान किया स्म० पन्यासजी श्री हितविजयजी म०
गया। आगम तत्ववेत्ता पन्यासजी श्री हितविजयजी आपने पन्यास बन जाने के बाद गुरुदेव की सेवा महाराज के पट्टधर मेवाड़ केसरी श्रीनाकोडातीर्थोद्धा- में रह कर काफी अनुभव प्राप्त किया और गुरुदेव रक वालब्रह्मचारी प्राचार्य पुंगव श्रीमद् विजय की सेवा भी अपूर्व की। उस सेवा का ही यह प्रताप हिमाचल सूरीश्वरजी म० का कुम्भलगढ़ जिले के है कि आज एक महान् आचार्य पद पर प्रतिष्ठा केलवाडा ग्राम में सं० १६६४ में जन्म हुआ। आप पूर्वक हीरे की तरह चमक रहे हैं। बीसा ओसवाल थे आपका नाम हीराचन्द, पिता का आपने अपने जीवन काल में अनेक प्रतिष्ठाएं, नाम गुलाबचन्दजी, माता का नाम पनीबाई था। करवाई जामनगर की प्रतिष्ठा उल्लेखनीय है जहाँ
जब आप तीन वर्ष के हुए उस सगय माता ने बावन जिनालय है पर एक ही मुहर्त में एक साथ गौतम वि० नाम के यतिजी की भेंट कर दिया था, ११२ धजा दंड चढाये गये । १२ वर्ष के हुए तब यतिजी का देहावसान होगया। उदयपुर से पालीताणा का पैदल संघ, सुरेन्द्र गामगुडा श्री संघ ने आपका पालन पोषण किया। नगर से जूनागढ़ का संघ, और तखतगढ़ से नाकोडा सं० १६८० में घाणेराव में मुनि श्री हेत विजयजी के तीर्थ का संघ । आपके जीवन में उल्लेखनीय संघ पास आपकी दीक्षा हुई और हिम्मत विजय नाम निकले हैं।