Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 176
________________ १७६ जन श्रमण संघ का इतिहास मुनिराज श्री विशाल विजयजी महाराज राधनपुर (गुजरात) में स्थित श्री शान्तिनाथजी जिलालय के निर्माता श्रवण श्रेष्ठी के वंशज सेठ भिकमजी मकनजी वीसा श्री माली गौत्र गोच्चनाथिया (तुगियाणा) के आप पुत्र थे। माता नन्दुबेन उर्फ प्रधानबाई की कुक्षि से सं० १६४८ फाल्गुन शुक्ला को आपका जन्म हुआ। संसारी नाम वृद्धिलाल था। आपके पिताजी और अग्रजबंधु एक ख्याति प्राप्त विद्वान है । पाइ असद् महाएणवों' नामक ग्रन्थ के संपादक है और इनकी ही देख रेख में बनारस में श्री यशोविजय जी जैन संस्कृत पाठशाला में वृद्धि लालजी ने ज्ञानाभ्यास किया । सौभाग्य से युगवीर प्राचार्य श्रीमद् विजय धर्म सूरीश्वरजी के दर्शनों तथा सम्पर्क का लाभ इन्हें मिला । वि० सं० १६७० मार्ग शीर्ष शु०६ के दिन व्यावर में आचार्य देव के शुभ हस्त से दीक्षित हो स्व० शान्त मूर्ति श्री जयन्त विजय जी म० के शिष्य बने । आचार्य विजय धर्म सूरिजी की परम्परा में प्रायः एक परम विद्वान, ज्ञानाभ्यासी होने के साथ २ सभी शिष्य उच्च श्रेणी के विद्वान मिलेंगे। आप आप बड़े तपस्वी मुनि हैं । आपने निम्न ग्रन्थों की रचनाएं की हैं:-द्वाषष्टि मार्गणाद्वार, संस्कृत प्राचीन भी बड़े विद्वान हैं । साहित्य रसिक हैं । आपने वल्ल- स्तवन संग्रह, सुभाषित पद्य रत्नाकर ५ भाग, श्री भीपुर में स्थापित श्री वृद्धि धर्म जैन ज्ञान मन्दिर को नाकोड़ा तीर्थ, भारोल तीर्थ, चार तीर्थ, कावि गंधार एक उच्च कोटि का ज्ञान भंडार बनाया तथा श्री यशो झगदिया तीर्थ, शंखेश्वर स्तवनावलि, बे जैन तीर्थो, श्री घोघा तीर्थ इत्यादि। विजय जैन ग्रन्थ माला भावनगर के द्वारा सा साहित्य आपके ग्रन्थों में शोध खोज पूर्ण ठोस साहित्य प्रकाशन में सतत् सचेष्ठ हैं। स्वयं सुलेखक हैं। के दर्शन होते हैं।

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