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जैन श्रमण-सौरभ
व समन्वयवादी भाषणों द्वारा कई स्थानों पर फूट का विलीनीकरण होकर संप सङ्गठन का प्रादुर्भाव हुआ है।
आप तपस्या में बडी श्रद्धा रखते हैं। बीकानेर के चातुर्मास में आपने स्वयम् मासक्षमण तप किया था।
आप श्री के उपदेश से खेतिया, तलोदा और नागौर आदि कई स्थानों पर भव्य जिन मन्दिरों का निर्माण तथा जीर्णोद्धार कार्य हुए हैं एवं ज्ञान मन्दिर भी स्थापित हुए हैं। मकसी, बीकानेर, आमेट, जलगाँव, आवीं, हैद्राबाद और कुलपाक आदि कई स्थानों पर प्रतिष्ठाऐं शांति स्नात्रादि कार्य सम्पन्न
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आपके सदुपदेश से खामगाँव, तीर्थ भद्रावती, टिन्डी वनम और आर्वी आदि कई स्थानों पर भव्या
मुनि श्री न्याय विजयजी म. त्माओं ने उपधान तप किया।
जैन मुनिराजों के संसर्ग तथा सिद्ध गिरीजी के यात्रा न्यायतीर्थ, साहित्यशास्त्री मुनि श्री दर्शनसागरजी के समय गुरुणीजी श्रीमान श्रीजी के उपदेश से आप महाराज को साथ लेकर आपने बंगाल, बिहार, यू.पी. में वैराग्य भावना जागृत हुई और विवाह के प्रस्ताव राजस्थान, मध्य भारत, खानदेश, बरार और सौराष्ट्र को अस्वोकृत कर सं० १६६५ आषाढ़ शुक्ला ११ को आदि प्रदेशों में विहार कर जैन धर्म के सूत्रों से आचार्य श्री विजय यतीन्द्रसूरिजी म. के पास डूडसी समन्वयवाद, अहिंसा, एकीकरण, सामाजिक, धार्मिक, (मारवाड़) में दीक्षा अंगीकार की। आपका नाम
आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर जनता को लाने का न्याय विजयजी रक्खा गया । बड़ी दीक्षा १६६६ माघ प्रयत्न कर रहे हैं।
शु०५ को सियाणा में हुई।
वर्तमान में आप २२ वर्ष के दीक्षा पर्यायी होकर मानराज श्री न्यायविजयजी महाराज जैनागमों के तथा संस्कृत प्राकृत के धुरन्धर विद्वान ___आपका जन्म सं. १६७० पौषशुक्ला ३ को खाच. और जैन विधि विधानों के प्रकांड पारगामी हैं।
मारवाड़ में आपका अच्छा प्रभाव है। आपके शुभ रौद (मालवा) में हुआ। पिता का नाम श्रीकिस्तूरचंद
हस्त से प्रायः-प्रति वर्ष प्रतिष्ठाएं उपधान आदि जी बोहरा बीसा ओसवाल । जो वर्षों से साटाबाजार
धार्मिक कृत्य होते ही रहते हैं। आप एक अच्छे इन्दौर में व्यवसाय करते हैं। माता का नाम धूरीबाई वक्ता एवं लेखक भी हैं। आपके यशो विजयजी नामक था। प्रारंभ में आपने उज्जैन मिल में कार्य किया। शिष्य भी प्रगतिशील विचारों के विद्वान मुनि हैं।