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जैन श्रमण-सौरभ
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अचलगच्छीय-प्रखरवका
के शिष्य रत्न शान्तमूर्ति पूज्य श्री नीतिसागरजी म० प्राचार्य श्री गुणसागर सूरीश्वरीजी म०
सा० के पास सं० १६६३ चैत्र कृष्णा ८ का कच्छ देछिया में दीक्षा अंगीकार की और गुणसागरजी नाम रक्खा गया। वैसे ही आपका जीवन धर्मानुष्ठान की ओर ही प्रवृत था-दीक्षोपरान्त आप विशेष रूप से आत्मोद्धार मार्ग में प्रवृत बने । प्राकृत एव संस्कृत के गहन अध्ययन से आप न केवल एक प्रकांड विद्वान ही बने एक अच्छे लेखक भी बने
और आपने संस्कृत भाषा व गजराती भाषा में अच्छी रचनाएं को है। । आपकी व्याख्यान शैली भी बड़ी ही प्रभावोत्पादक है। प्रखर वक्ता के रूप में आप प्रसिद्ध हैं।
सं० १६६६ महासुदी ५ को श्राप उपाध्याय पद पर विभूषित किये गये तथा पट्टधर घोषित किये गये ।
सं० २००६ में पूज्य श्री गोतम सागरजी म० के स्वर्ग आपका जन्म सं० १९६६ महासुदी २ को कच्छ
. वासी होने पर अचलगच्छीय जैन संघ के आप ही के देछीया ग्राम में बीसा ओसवाल कुल में हुआ।
अधिनायक माने गये और सं० २०१२ वैशाख शुक्ला
३ को वम्बई के माडवी लता में महा महोत्सव पूर्वक पिता का नाम श्री लालजी भाई तथा माता का नाम धन आप श्री को प्राचार्य पद विभूषित किया गया। बाई था। संसारी नाम-गांगजी भाई।
आप श्री द्वारा जैन शासन प्रभावना हेतु अनेक ___ बाल्यकाल से ही आप बड़े प्रतिभावान, धर्म- कार्य हुए हैं। बम्बई तथा कच्छ प्रदेश में आप श्री निस्ठ एवं तपः पूत थे धर्मराधाना एठां तपस्या में के प्रति अतीव श्रद्धा है। आप श्री के शुभ हस्त से ही लीन रहने वाले इस महत पुरुष ने कई तीर्थों की अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठाए' उपधान आदि धर्ग कृत्य यात्राएं भी की। सन्त समागम से वैराग्य भावना
होते रहते हैं।
वर्तमान जैन श्रमण संघ में आप श्री का एक प्रबल बनी। आपने जन तत्वज्ञान सम्बन्धी काफी संन्मान पूर्ण उच्चस्थान है। पुस्तकों का अध्ययन किया। कई थोकड़े, प्रतिक्रमण आप श्री के आज्ञानुवर्ती करीब २० मुनिवर और आदि अावश्यक ग्रन्थ कंठस्थ होगये थे। जैनागमों ७५ साध्वी समुदाय है। मुनिवरों में मुनि श्री चंदन का भी अध्ययन क्रम जारी था।
सागरजी, विनयेन्द्र सागरजी, कीर्तिसागजी, देवेन्द्र
सागरजी विद्यासागरजी भंद्रकर सागरजी आदि मुख्य २३ वर्ष की अवस्था में अचल गच्छाधिपति त्याग हैं । साध्वियों में गुलाब श्री जी, लाभः श्री जी, मगन मूर्ति पूज्य दादासाहब श्री गौतमसागरजी म. सा. श्री जी, विमला श्री जी, कपूर श्री जी आदि मुख्य हैं।