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जैन श्रमण-सौरभ
में हुई हैं । आप संस्कृत और हिन्दी के अच्छे विद्वान
कवि हैं।
मुनिराज श्री कमलविजयजी म०
मनिराज श्री जयविजयजी म०
गुरुदेव ने कई एक महानुभावों को साधु दीक्षा देकर शिष्य बानाए थे। जिसमें से अभी विद्यमान प्रधान शिष्य मुनिराज श्री जयविजयजी महाराज हैं।
आप जयपुर निवासी हैं और राठौड़ वंशीय राजपूत हैं। आपका जन्म सं० १६४८ वैशाख सुदी पंचमी का है। अापने सं० १६७६ मिंगसर सुदी पंचमी को दीक्षा ग्रहण की थी। बड़ी दोक्षा अलीराजपुर (मालवा) में वि० सं० १६८१ में हुई थी और आपको गुरुदेव ने ही विद्याभूषण' का पद प्रदान किया था।
संवत् १६६२ माघ सुदी सातम के दिन मुनि श्री लब्धिविजयनी महाराज को दीक्षा दी गई ।
संवत् २००३ माघ सुदी तेरस को मुनि श्री कमलविजयज की दीक्षा धानेरा ( उत्तर गुजरात ) में हुई । बडी दीक्षा बामणवाडजी में स० २००४ में दी गई है। आपकी जन्म भूमि झाबुआ (मालवा) है आप सूर्यवंशी राजपूत हैं। आप साहित्य प्रेमी एवं गंभीर विचारक हैं । मनिराज श्री मनकविजयजी म०
महिमा का घर मालवा के अरणोद गांव में आप का जन्म हुआ था। आप बाल ब्रह्मचारी हैं सं० १६६
की साल में मन्दसौर में आपकी दीक्षा हई। मनि मुनिराज श्री लब्धिविजयजी म०
श्री लक्ष्मीविजयजी के यह प्रथम शिष्य हैं। दिन भर आपका जन्म स्थान खरसोद है और शाकलद्वीपी ध्यान करते रहते हैं । आपकी उम्र इस समय करीब ब्राह्मण हैं। आपकी बड़ी दीक्षा फलौदी में सं० १६६३ ६० वर्ष की है।