Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 173
________________ जैन श्रमण-सौरभ आप को सं० २००० की साल में पन्यासजी मुमुक्षु भव्यानन्द विजयजी म० कमलविजयजी द्वारा आचार्य पद दिया गया, तथा २००४ में मेवाड़ केसरी पद से अलंकृत किया गया। मेवाड़ प्रान्त में इतना उपकार किया है कि वहां के लोग कदापि नहीं भूल सकते। ___ मजेरा जैन विद्यालय की जड़ आपने ही मजबूत की है । कराई, समीचा, उसर आदि गांवों में नवीन जैन मन्दिरों का निर्माण भी आपने करवाया है अनेकों प्राचीन जिन मन्दिरों का उद्धार आपने अपने उपदेश द्वारा करवाया है जिसमें नाकोडा तीर्थ की घटना विशेष प्रसिद्ध है। आप ही के अथाग परिश्रम का फल है कि श्री हित सत्क ज्ञान मन्दिर का नवीन भवन निर्माण हो गया है। प्रतिष्ठा होने की तैयारी है । घाणेराव का नूतन उपाश्रय, तथा उदयपुर का उदयपुर गुडा गांव में आपका जन्म सं० १९८१ आंबिलभवन, तथा रिच्छेड का जैन उपाश्रय, मजेरा ज्येष्ठ मास में हआ। आपके पिता का नाम पथ्वीराज का जैन उपाश्रय यह सब आप के उपदेश का परि जी संघवी और माता का नाम नौजीबाई था। आप णाम है । आप ज्योतिष शिल्पशास्त्र तथा आगम गन्थों तीन भाई थे। दूसरे भाई बम्बई में दुकान चलाते के प्रकाण्ड विद्वान हैं। थे। आप भी १० वर्ष की छोटी सी उम्र में बम्बई आचार्य श्री का पहले नाम हिम्मतविजयजी था चले गये हैं । पिता ५ वर्ष में माता १४ वर्ष में और मगर प्राचार्य पदवी के समय परिवतेन कर हिमाचल बम्बई वाले भाई की १५ वर्ष में मृत्यु हो गई, । श्राप सूरिजी रक्खा गया। बम्बई में रहते हुए अधेरी में आचार्य श्री रामचन्द आपके शिष्य परिवार में मुनि श्री भव्यानन्द सरीश्वरजी के पास उपधान करने गये । आपकी विजय, लक्ष्मी विजय, मनक विजय, रत्नाकर विजग, वैराग्य वाहिनी देशना से हृदय पलट दिया। वैराग्य केशवानन्द विजय, और संपत विजय, मुनि इन्द्र रंग में रंगे मुमुक्षु श्री भव्यानन्द विजयजी रत्नाकर विजय, मोती विजय विद्यमान हैं । विजयजी श्री के शवानंद विजयजी आप तीनों एक ही ____पं० कमल विजयजी के एक शिष्य देवेन्द्र विजयजी गांव के हैं। है। आचार्य श्री आज्ञा में करीब ८०-६० साध्वीजी उदयपुर के सुप्रसिद्ध चौगानिया के मंदिर के मौजूद हैं। निकट वट वृक्ष के नीचे आचार्य श्री विजय हिमाचल

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