Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 168
________________ १६८ जैन श्रमण संघ का इतिहास भद्रसूरिजी के शिष्य सुंदर वि० के शिष्य पन्यास श्री ओसवाल शिशोदिया गौत्रीय शा० हजारीमलजी के पुत्र रूप में माता भीखी बाईजी कुक्षि से हुआ । संसारी नाम-फौजमल । सं० २००७ जेठसुदी ३ (गु०) को दीक्षा हुई और जेठसुदी ७ (गु०) को बड़ी दोक्षा पालीताणा में हुई । आचार्य श्री के साथ आपने मारवाड़ के ग्रामों में विहार किया। कुछ ही समय में विशाल ज्ञानाभ्यास के कारण आप समाज में लोक प्रिय और प्रभावशाली मुनि बन गये । आपके उपदेशों से आलपा, रामसेन, जूना जोगा पुरा आदि कई स्थानों पर वर्षों से चले आ रहे कुसम्प मिटे हैं। सिरोही के बुगांव में चालीस वर्षों से बने मंदिर की रूकी हुई प्रतिष्ठा को आपने सं० २००६ में करवाई । चरणविजयजी गणि । आपका प्राचीन ग्रन्थों की शोधखोज व पठन पाठन की ओर विशेष लक्ष्य है। कई स्थानों पर प्रतिष्ठा उपधान आदि धार्मिक कृत्य भी कराये हैं । आपके उपदेश से पाठशालाएं भी खुली हैं। आपके शिष्य मुनि श्री सुदर्शन विजयजी हैं। जिनका जन्म सं० १६७६ मि० वदी अमावस तखतगढ़ में हुआ । पिता हंसाजी, माता-मणी बेन। सं० ना० तखत मल जी । जाति-पोरवाड़ चौहान । दीक्षा-सं० २००६ म० सु० १ भोयणी जी तीर्थ । गुरू ग्रा० महेन्द्रसूरिजी । मुनि श्री सुशील विजयजी महाराज (then) matine tuberan મૂળરાજ ચોખોવિજયજી મહારાજ સુબશા ધુ તો લાલ અજી તરફથી શ્રીસંઘન uce १२ २ २ ९९ आप ० श्री महेन्द्रसूरि के प्रधान शिष्यों में हैं और जैन शासन प्रभावना की ओर विशेष लक्ष्य रखते हैं । आपका जन्म सं० १६७० पौष वदी १४ को सिरोही ( राजस्थान ) के आलपा ग्राम मे बीसा सं० २००६ का चातुर्मास रामसेन (सिरोही) में हुआ । चतुर्मास बाद चांदुर वाले शा० तेजमल दाना जी को शिष्य रूप में प्रवजित बनाया और मुनि तेज विजयजी नाम रखा । सं० २०१० माघशुक्ला १३ को श्र० श्री विजय हर्ष सूरीश्वरजी की निश्रा में इन्हें बड़ी दीक्षा दी और नाम तेजप्रभ विजयजी रक्खा । जन्मस પર મામા તેજ પ્રમવિજયજી મ આ ફોટો એક સદગૃહસ્થ તરફથી શ્રી સંઘને ખવી આ ૧૨ નામ cafe भेट मुनि श्री तेजप्रभ विजयजी www.umaragyanbhandar.com

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