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जैन श्रमरण-सौरभ
मुनि श्री सुशील विजयजी एक क्रियाशील ज्ञान वान मुनि होने के साथ साथ बड़े समाज सुधारक भी हैं। दीक्षोपरान्त आपका विहार क्षेत्र प्रायः मारवाड़ ही विशेष रहा है और आपके उपदेशों से अनेक स्थानों पर कुसम्प मिट कर सु संगठन स्थापित हुए हैं । आपके उपदेशों से कई तीर्थ यात्री संघ निकले । जावाल में वर्धमान तप आयम्बिल खाता चालू हुआ तथा गांव बाहर आदिश्वर भगवान के मंदिर में भगवान के तेरह भवों का कलात्मक पट्ट बना है और भी अनेक उपकारी कार्य हुए हैं।
मुनिराज श्री तिलकविजयजी
जन्म तिथि १६५५ आसोज शुद २ को पचपदरा (भागल) । पिता धनराजजी । माता लक्ष्मीबाई। जाति ब्राह्मण गोत्र मकांणा । दिक्षा १६७२ जेठ वदि ५ सिलदर । यति दिक्षा गुरु गुलाब विजयजी । बडी दिक्षा गुरुआ श्री महेन्द्र सूरिजी । १६६५ माह शुद ५ मंडार | ज्योतिष शास्त्र के प्रवर विद्वान हैं।
आपके उपदेशों से कई स्थानों पर फूट मिटी है। तथा प्रतिष्ठा महोत्सव, संघ यात्रा के कार्य हुए हैं। कई जगह आयंबिल खाता खुलवाये हैं। आप बड़े तपस्वी हैं।
Shree Sudha
मुनि श्री लक्ष्मी विजयजी म०
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आपका जन्म मारवाड़ राज्य के अन्तर्गत बादनबाड़ी नामक गांव में हुआ । आपने विशाल परिवार से नाता तोड़ कर सं० १६६६ की साल में नाकोडा तीर्थ स्थान पर आचार्य श्री० हिमचल सूरिजी के पास दीक्षा स्वीकार की । उस समय आपकी उम्र करीब ४० के उपर थी। आप कार्यवश वादनवाडी पधारे तो आपकी पूर्व की पत्नी ने गोचरी के बहाने ऐसा षड्यंत्र रचा कि लक्ष्मीविजयजी के कपड़े उतरवा दिये, आपको करीब एक मास अनिच्छा से भी घर में रहना पड़ा । किसी प्रकार विश्वास देकर धन कमाने के बहाने से पालीताणा जाकर आचार्यदेव श्रीमद् विजय उमंग सूरीश्वरजी के हाथ से मेवाड़ केसरी आचार्यदेव के शिष्य के नाम से पुनः दीक्षा सं० १६६८ के मार्ग शीर्ष मास में अंगीकार की, आप हृदय के बड़े सरल एवं भद्रिक हैं। उम्र तपस्वी और उम्र बिहारी है, बोलने में बडी मधुरता टपकती है । जालौर जिले की जैन समाज में आपके प्रति काफी श्रद्धा है ।
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