Book Title: Jain Shraman Sangh ka Itihas
Author(s): Manmal Jain
Publisher: Jain Sahitya Mandir

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Page 166
________________ १६६ QDID DEIREDON जैन श्रमण संघ का इतिहास आप में किंचित मात्र अभियान नहीं घुस पाया । आचार्य श्री के स्वर्गवास के पश्चात् सं० २००७ वैशाख सुदी पूनम के दिन आप आचार्य पद पर विभूषित किये गये । आचार्य बन जाने पर भी आप में निराभिमानता, सरलता और मधुरता आपके जीवन क्रम की महान् विशेषताए' बनी हुई हैं । आप श्री ने उपदेश द्वारा गुजरात, राजस्थान मारवाड़ आदि क्षेत्रों में अनेक भव्य जीवों को जैन धर्म के प्रति श्रद्धालु बनाया हैं। शासनोन्नति के अनेक कार्य हुए हैं। सिरोही, षांडोव चंडवाल तथा बिठोड़ा के जैन मन्दिरों में हुए भव्य उद्यापन महो• त्सव आज भी सिरोही जिले की समाज याद करती है । इसी प्रकार और भी अनेक स्थानों पर उपधान प्रतिस्ठाएं होती रहती हैं। धार्मिक शिक्षा की ओर भी आपका विशेष लक्ष्य है। और कई जगहों पर धार्मिक पाठशालाएं खुलवाई हैं । सिरोही के जैन पाठशाला की उन्नति हेतु आपके प्रयत्न प्रसंनीय हैं। साबरमती जैन पाठशाला, अहमदाबाद में श्री सुरेन्द्रसूरि तत्वज्ञान पाठशाला, कुवाला जैन पठाशाला आदि आपही के उपदेश का फल है । आपका शास्त्राभ्यास भी अति गहन है । पन्यास श्री अशोक विजयजी गणि आपका जन्म सं० १६६६ भाद्रपद शुक्ला को दस्सा वणोक जैन श्री वीरचन्दजी मगनलाल की धर्मपत्नी श्री जुबल बेन की कुक्षि से हुआ । संसारी नाम श्री चन्द था । संवत् १६८७ कार्तिक वदी ११ को |||||||||||||||||||||| DHM डेहलाना उपाश्रय वाला उपाध्याय श्री धर्मविजयजी गरिण के पास दीक्षा अ ंगीकार की । आप बड़ े ही शान्तमूर्ति, तपस्वी और ज्ञानाभ्यासी न्याय व्याकरण षड् दर्शन और जैना गमों के अच्छे जानकार हैं । आपके शुभ हस्थ से उपाधान, प्रतिष्ठा, दीक्षा, बड़ी दीक्षा आदि कई पवित्र धार्मिक अनुष्ठान हुए हैं तथा होते रहते हैं । पन्यास श्री राजेन्द्रविजयजी गणि जन्म सं० १६७० फागुन वदी ११ राधनपुर । पिता - गिरधारीलाल त्रिकमलाल । (सिद्धीगिरी की यात्रार्थ जाते हुए बोटाद में जन्म हुआ) माता का नाम जुबिल बेन । जाति-बीसा श्रीमाली । दीक्षा सं० १६६२ मिंगसर खुद ३ पालीताणा । दीक्षा गुरुआचार्य श्री मुरेन्द्रसूरीश्वरजी म० ( डेहला वाला ) । श्राप बड़ े शान्तसूर्ति, तपस्वी एवं निरन्त ज्ञान ध्यान मग्न रहने वाले मुनि हैं । umarggyanbhandar.com

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