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जैन श्रमण-सौरभ
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स्व०प्राचार्य श्री विजयसुरेन्द्रसूरीश्वरजी
बाल ब्रह्मचारी [ डेहला वाला ] प्राचार्य श्री विजयरामसूरीश्वरजी म.
आपका जन्म बनासकांठा (गु.) के कुवाला ग्राम
आपका जन्म सं० १६७३ महासुदी पूनम के दिन में का० शु०२ सं० १९५० को हुआ नाम शिवचन्द
अहमदाबाद में श्री भलाआई की धर्मपत्नी गंगाबाई रक्खा गया। सं० १६६६ पौ० २०१० को पाटन (गु.)
(वर्तमान में साध्वी श्री सुनन्दा श्री जी) की कुक्षि में पाध्याय श्री पं० धर्मविजयजी गणि के पास दाक्षा से हआ। नाम रमण ल रक्खा गया । अंगीकार की। सं० १६६६ मगसर सुदी ५ को योगाद्वहन पूर्वक गणि तथा पन्यास पद प्रदान किया गया ।
बाल्यकाल से ही आपकी प्रबति वैराग्य मयी थी। सं० १६६० में साधु सम्मेलन के पश्चात् उ०
सं० १९८६ वैशाख वदी १० के दिन डेहलाना उपाश्रय धर्म विजयजी के स्वर्गवास होने पर संघ की जिम्मेवारी
अहमदाबाद में आचार्य श्री सुरेन्द्र सूरीश्वरजी के आप पर आई। आचार्य पदवी धारक नहीं बनना
पास दीक्षा अगीकार की। अब रमणलाल से आपका
नाम राम विजय रक्खा गया। चाहने पर भी संघ के थागे वानों की अत्यन्त आग्रह भरी विनति पर आप सं० १६६६ में फाल्गुन कृष्णा कुछ ही समय बाद आपकी माता ने भो साध्वी ६ का राजनगर जूनागढ़ में आचार्य पद से विभषित जी श्री चंपा श्री जी के पास दज्ञा अंगीकार कर ली किये गये । परन्तु काल की विचित्र गति है। आचार्य और सुनन्दा श्री जी बन गई। बनने के ६ वर्षों बाद ही सं० २००५ कार्तिक वदी४. रामविजयजी ने अल्प समय में ही आचार्य श्री को ११|| बजे राजनगर में आपका स्वर्गवास हुआ। तथा उनके शिष्य रत्न मुनि श्री रविविजयजी की गुजरात मौराष्ट्र कच्छ आदि प्रदेशों में आपका बड़ा सुदेखरेख में अनेक धर्म ग्रन्थों और जनागमों का प्रभाव था आपके पट्टधर वर्तमान में यशस्वी आचार्य गहन अध्ययन कर अच्छा ज्ञान प्राप्त कर लिया । श्री विजय रामसूरीश्वरजी म० विद्यमान हैं। अरुपायु में ही विशाल ज्ञान प्राप्त कर लेने पर भी