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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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टीका । (५) 'नय रहस्य' ग्रन्थ पर 'प्रमोहा' नामक में दीक्षित हुए । वि० सं० २००७ का०व०६ को ३००० श्लोक प्रमाण वृति । (६) 'सप्त भंगी नयप्रदीप' वेरावल ( सौराष्ट्र ) में गणिपद तथा सं० २०१७ ग्रन्थ पर २००० श्लोक प्रमाण बाल बोधिनी टीका। वैशाख शुक्ला ३ को राजनगर अहमदाबाद में १५ (७) 'अनेकान्त व्यवस्था अपरनाम जैन तर्क परिभाषा' अन्य गणवरों के साथ महा महोत्सव पूर्वाक पन्यास पर १४००० श्लोक प्रमाण वृत्ति (5) नयामृत तरंगिणी पद विभषित हुए। ग्रन्थ पर 'तरंगिणी तरणी' नामक १६.०० श्लोक आप एक प्रखरवक्ता, कवि तथा लेखक रूप में टीका । (E) हरिभद्र सरि रचित 'शास्त्रवार्ता समुदाय प्रसिद्ध है। २७ वर्ष की निर्मल दीक्षा पर्याय है। ग्रन्थ पर स्याद्वाद वाटिका' नामक २५००० श्लोक
व्याकरण, न्याय साहित्य तथा जैनागम के अभ्यासी प्रमाण अनुपम टीका । (१०) 'काव्यानशासन' ग्रन्थ हैं । विनयी किया पात्र तपस्वी एवं सद चरित्रता पर ४० हजार श्लोक प्रमाण सुन्दर वृत्ति (११) श्री आपके जीवन की विशेपताएं हैं। सिद्धसेन दिवाकर प्रणीत 'द्वात्रिंशद द्वात्रिंशिका प्रन्थ प्राप श्री की रचनाए :-१. श्री सिद्धहेम' व्यापर 'किरणावली' नामक टीका (१२) इसके अतिरिक्त करण ग्रन्थोपयोगी 'श्री सिद्ध हेम शब्दानुशासन देवगुर्वाष्टिका आदि महान् ग्रन्थों की रचनाएं की हैं। सुधा [थम भाग] २. आ० सिद्धसेन दिवाकर रचित - इसी प्रकार व्याकरण, साहित्य, छंदशास्त्र, ज्योतिष 'द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका' ग्रन्थ का प्रौढ़ भाषामय भावार्थ न्याय, जैनागम आदि सभी विषयों के सर्वोत्कृष्ट ग्रन्थों ३. आ. श्री जियोवेन्द्रसरि कृत भाष्यत्रय' का का श्राप श्री को गहन अध्ययन है।
छन्दबद्ध भाषानुवाद ४. संस्कृत में 'तिलक मंजरी कथा संस्कृत एवं प्राकृत भाषा में धारा प्रवाही प्रवचन साए तथा उपका गुजराती में संक्षिप्त भावार्थ । ५. करने में एवं गद्य पद्य दोनों में उत्कृष्ट सिद्ध हस्त श्री हरिभद्रमूरि कृत 'शाम्बवार्ता समुच्चय न थ का कवि हैं।
भावार्थ ६. श्रा हेमचन्द्राचार्य कृत 'काव्यानुशासन' इस प्रकार आचार्य देव श्री मद् विजय लावण्यम रिजी ग्रन्थ पर संस्कृत में चूणि का । ७. परमाहत कुमारपाल जैन जगत् की एक अनुपम ज्योति हैं। ३७ वष का कृत 'आत्मनि। द्वात्रिशिका' पर 'प्रकाश' नामक विशुद्ध दीक्षा पर्याय है।
टीका तथा कुमारपाल राजा की जीवनी । ८. जगद्गुरु आप श्री के विद्वान शिष्यों में पं. दक्ष विजयजी होरसूरिजी कृत 'वद्ध मान जिन स्तोत्र' पर दीपिका' गणि तथा पं० श्री सुशील विजयजी गणि प्रमुख हैं। १
टीका । ६. प्राचीन श्री गौतमाष्ट' पर वृत्ति तथा श्री इसके सिवाय अनेक शिष्य प्रशिष्यादि हैं। विशाल
गौतमस्वामी का जीन वृतांत । १०. महाकवि धनपाल
का आदर्श जीवन वृतान्त । मुनि समुदाय है।
इनके अतिरिक 'प्रभुमहावीर जीवन सौरभ, ए धर्मपं० श्री सुशील विजयजी गणि । नाज प्रतापे, ए तारा ज प्रतापे, दोक्षा नो दिव्य प्रकाश,
आत्म जागृति, संधोपमा बत्तीसी, ऋषभ पंचाशिका, श्रा० श्री विजय लावण्य सरि के मुख्य पट्टधर वधमान पचाशिका, सिद्र गिरी पंचाशिका, श्रमा विद्वद् शिरोमणी पन्यासजी श्री दक्षविजयजी के गणि झरणां, सिद्धचक्र । कुसुम वाटिका आदि ५० से भी के शिष्य रत्न, पन्यासजी श्री सुशील विजयजी गणि अधिक ग्रन्थों की यापने रचनाए सम्पादन किया का जन्म सं. १६७३ में चाणमा में हुआ। पिता है। आपके संसारी पिता तथा वर्तमान में पूज्य का नाम चतुरे भाई ताराचन्द तथा माता का नाम वय वृद्ध स्थविर मुनिराज श्री चन्द्रप्रभ विजयजी म., चंचल बहेन था। जाति बीसा श्रमाली चौहान गौत्र। त्येष्ठ बन्धु पन्यास प्रवर श्री दक्ष विजयजी गणि, छोटी संसारी नाम-गोदड भाई।
बहिन बाल ब्रह्मचारिणी साध्वीजी रवीन्द्र प्रभा श्री १४ वर्ष की बालवय में आ० विजय लावण्य सरिजी भी दीक्षित अवस्था में संयम मार्ग में आरूढ आत्मो-' के पास सं० १६८८ का.व.२ को उदयपुर (मेवाड़) न्नति रत हैं .
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