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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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आचार्य श्री विजयलक्ष्मणसूरिजी म. गहन अध्ययन किया। कुछ ही समय में आप महा
प्रभाविक जैनाचार्य बनगये ।
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आ श्रीमद् विजय लब्धिसूरिजी के पट्ट प्रभावक ० श्री विजयलक्ष्मणसूरीश्वरजी महाराज का जन्म सं० १६५३ में जावरा (मालवा) के श्रोसवाल जातीय मूलचंदजी की धर्म पत्नि धापूबाई की कुक्षि से हुआ । १७ वर्ष की वय में आ० श्री विजय लब्धिसूरिजी के पास दीक्षित हुए। दीक्षोपरान्त जैनागम, न्याय, व्याकरण, ज्योतिष मंत्र शास्त्र आदि के विषयों पर
श्री राजगोपालाचार्य, मैसूर नरेश सौराष्ट्र के राजप्रमुख भावनगर नरेश, ईडर नरेश आदि कई ' राजा महाराजा आपसे अत्यन्त प्रभावित हुए। कई राज्यों के मंत्री गण, प्रोफेसर तथा उच्चाधिकारी गणों ने भी आपके प्रति अपार श्रद्धा प्रकट की है । कई स्थानों की नगर पालिकाओं ने आपको अभिनन्दन पत्र प्रदान किये हैं । आप श्री के उपदेश से अनेकों मांसाहारियों ने मांसाहार, शराब, जुआ पर स्त्री गमन आदि दुर्व्यसनों का त्याग किया है।
अनेक स्थानों पर जैन मन्दिर, तथा उपाश्रय बन्धे हैं। दादर में श्री आत्म कमल लब्धिसूरीश्वरजी जैन ज्ञान मन्दिर निर्माण हुआ है जिसमें हजारों की संख्या में प्राचीन एवं शास्त्रादि ग्रन्थ संग्रहीत हैं ।
दक्षिण देश में आप श्री ने विशेष उपकारी कार्य किये हैं जिससे 'दक्षिण देशोद्धारक' विरुद से बिभूषित हैं । २० हजार मील का पाद प्रवास का वर्णन 'दक्षिण मां दिव्य प्रकाश' सचित्र ग्रन्थ प्राप्त है । आप श्री के पट्ट शिष्य शतावचनी पं० मुनि श्री कीर्तिविजयजी प्रख्यात मुनिवर हैं ।
आ० श्री विजय लक्ष्मण सूरीजी भारत के भूतपूर्व गव• र्नर जनरल श्री राजगोपालाचार्य के साथ धर्म चर्चा कर रहे हैं।
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