________________
जैन श्रमण-सौरभ
शतावधानी मुनि श्री कीतिविजयजी विभूतिओ, अन्तर ना अजवाला, दक्षिणमां दिव्य
प्रकाश यादि १०-१२ पुस्तकें लिम्बी हैं। अहत् धर्म प्रकाश का हिन्दी, अंग्रेजी, कन्नडी, तामिल तेलगु एवं मराठी में अनुवाद छपे हैं।
एक अच्छे लेखक, कवि व्याख्याता होने के साथ साथ चमत्कारी शतावधानी हैं। अनेक स्थानों पर आपके शतावधान प्रयोग से लोग चमत्कृत हुए हैं।
२६ वर्ष की दीक्षा पर्यायी ये मुनिवर जैन शासन के गौरव वृद्धि हेतु सतत् प्रयत्न शील हैं।
६ श्री यशोभद्र विजयजी गणि
आपका जन्म गुजरात के स्थं भनपुर गांव में पिता मूलचन्द भाई तथा माता खीमकोरबाई की कुक्षि से स. १६७२ चैत्र वदी अमावस्या के दिन हुआ। संसारी नाम कान्तिलाल । सं० १९८८ में चाणम्मा में श्राचार्य श्री विजय लक्ष्मणसूरिजी के पास दीक्षा अंगीकार की। ___ अल्पकाल ही में आप एक प्रसिद्ध वक्ता, आप श्री का जन्म सं० १४५४ आ नोज सुदी १३ कवि तथा संगीतज्ञ के रूप में पहिचाने जाने लगे। को कच्छ सुथरी में हुआ। पिता का नाम शामजीभाई सं० २०१३-१४ के वम्बई, दादर तथा अहमदाबाद तथा माता का नाम सोहनबाई। जाति-ओसवाल
गौत्र-छोड़ा। में हुए आपके प्रवचनों ने श्रेताओं को मंत्र मुग्ध
आचार्य श्री विजय किस्तूर सूरिजी के पास सं० बनाया। सं० २००६ में बंगलोर के चातुर्मास में १९८७ माघ सुदी ६ को कलाल (गुजरात ) में दोक्षा
आपको “कविकुल तिलक" के विरुद से सुशोभित अंगीकार की। किया गया। आपने कई सुन्दर रसीले स्तवन, पूजाए आप श्री एक विद्वान व्याख्याता, साहित्य प्रमी तथा गहुंलियाँ युक्त पुस्तकें लिखी हैं तथा 'अमीनावेण, मुनिवर हैं। आप श्रा के शुभ हस्त से कई स्थानों पर संस्कारनी साडी, अहत् धर्म प्रकाश, अहिंसा, महावीर, उपधान उजमणा, प्रतिष्ठा, उपाश्रय तथा वर्धमान स्वामी नु जीवन चरित्र, दीवा दांडी, अनेक महान् तप खाते खुलवाने के कार्य हुए हैं।