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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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में आचाय पद और इस परम्परा में ७५ वें पट्टधर हैं।
ज्ञानोपासना मैं रात दिन रत रहना ही आपकी जीवनचर्या का मुख्य अंग है । विशाल ज्ञान सागर का मंथन करने वाले ये महान् मुनि आज जैन समाज के महान श्रद्धय य आ० हैं । संस्कृत एवं प्राकृत के आप दिग्गज विद्वान हैं। कर्म साहित्य पर आपने 'कर्म सिद्धी' तथा 'मार्गणा द्वार विवरण' नामक ज्ञानागम ग्रन्थों की सुन्दर रचनाएं की हैं। आपकी पांडित्य पूर्ण अनुभव, चिन्तन, मनन एवं अनुशीलन की विशेषताएं आपके आज्ञानुवर्ती मुनि समुदाय पर भी प्रभावोत्पादक बनी हुई है।
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था० श्री विजय रामचन्द्रसूरिजी म०
आपका जन्म सं० १६५२ फाल्गुन कृष्णा ४ पादरा (गु० ) गांव में हुआ। पिता का नाम छोटालान । माता का नाम समरत बेन । संसारीनाम-त्रिभोवनदास । दीक्षा-सं० १६६६ पौष सुद गंधार ग्राम । पन्यास पद सं० १६८७ का० व० ७ । उपाध्याय पद स० १६६१ चैत्र शु० १४ राधनपुर । आचार्य पद सं० १६६२ वै० शु० ६ बम्बई | गुरु-आ० श्री वि० प्रेम सूरीश्वरजी म० ।
वर्तमान प्रभावशाली जैनाचार्यों में आप श्री का प्रमुख स्थान है | प्रख्यात प्रवचनकार हैं। 'जैन प्रवचन' पत्र द्वारा आपके प्रवचन सर्वत्र सुलभ हैं । आप श्री द्वारा अनेक स्थानों पर प्रतिष्ठाएं, उपधान, आदि कार्य सम्पन्न होते ही रहते हैं ।