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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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४१ अजितदेवसरि ४२ विजयसिंहसरि । ४३ सोमप्रभसूरि
तपगच्छ
४४ तपस्वी जगच्चन्दसरि (हीरला) ४५ देवेन्द्रसरि (लघु पोषाल) । ___ विजयचन्द्रसार ( बड़ा पोषाल ) ४६ धर्मघोषसरि ४७ सोमप्रभसरि (४ शिष्य आचार्य) ४८ सोम तिलकसरि (४ शि० आ०) ४६ देवसुन्दर सरि (५ श्रा०शि०) ५० सोम सुन्दरसरि (४ आ. शि०) ५१ सुन्दरसरि ( सहस्त्रावधानी) ५२ रत्नशेखर सूरि ५३ लदमीसागरसरि ५४ सुमति साधुसूरि ५५ हेम विमलसूरि ५६ आनंद विमलसरि ५७ विजयदानसूरि ५८ जगद्गुरु हीरविजयसरि
राज विजयसूरि (रत्न शाखा) ५६ विजयसेन सूरि ६० विजयदेवमरि ( देसूर संघ)
विजय तिलकसुरि ( आनन्दसर संघ) ६१ विजयसिंहसरि
विजय प्रभसूरि (यतिशाखा) ६२ सत्यविजयगणी ६३ कपूरविजयगणी
कुशल विजय गणी ६४ क्षमा विजयगणी ६५ जिन विजयगणी
इसके बाद का पाटानुक्रम बनाना कठिन एव विवादा स्पद है अतः इम फुटनोट के रूप में बादकी केवल आचार्य परंपरा ही लिख देना उचित समझते हैं ।
(१) ५६ वे पट्टघर आनन्द विमलसूरि के दो शिष्य हुए श्री विजयदानसूरिजी तथा श्री ऋद्धि विमलजी । विजयदान सूरि के (५८ ) पट्टधर श्रीहोर विजय सुरि हुए । ऋद्धि विमलजी के कीर्ति विमलजी हुए। इनकी ६ ठी पढी में से दयाविमलजी हुए।
(२) ५८ वें पट्टधर जगद्गुरु हीरविजयसूरि के ५ शिष्य हुए । विजयसेनसूरि, उ० किर्तिविजय गणी, ७० कल्याण वि० ग०, उ० कनक वि० ग०, उ० सहजसागरजी तथा तिलक विजयजी। विजय सेन सूरि के पट्टधर उपरोक्त पट्टावली के ६०, से ६५ नं. तक है । सहजसागरजी की १० वीं पोढी में मयासागर जी हुए। ___ (३) श्री मयासागरजी के गौतम सागरजी व नेमसागरजी दो शिष्य हुए। श्री गौतमसागरजी के झवेर सागरजी व झवेर सागरजी के श्रागमोद्वारक आचार्य श्री सागरानंद सूरि हुए ।
(४) श्री मयासागरजी के दूसरे शिष्य नेमसागर जी के रविसागरजी, इनके सुख सागरजी और सुखसागरजी के शिष्य प्रा० श्री बुद्धि सागर सूरिजी हुए।
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