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जैन श्रमण संघ का इतिहास
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राम पिपेवि५ महारा
से ६ विद्यमान हैं:-१ शीलविजय (स्व०) २ वल्लभः स्व. श्री विवेक विजयजी महाराज दत्त वि०, सुरेन्द्र ३ वि० ४ न्याय वि०, ५ नीति वि० (स्व०)६ समता वि०७ शांति वि०८ सुमन वि०
(४) विमलविजय जी के विबुध विजयजी ।
(५) आ० विद्यासरिजी के उपेन्द्र वि० (स्व०) प्रीति विजय एवं रत्न वि०।
(६) विचार विजयजी के वसंत विजय ।
(७) विकास विजयजी के ६ शिष्य-रूप वि. विनय वि. (स्व.) गणि इन्द्र वि., चन्द्रोदय वि. ६ वि०, तथा कैलाश वि०।
() विशारद विजयजी के-हिम्मत वि० तथा शुभंकर विः।
अन्य आज्ञानुवती मुनिराज १ प्रवर्तक (स्व०) कान्ति विजयजी के शिष्य चतुर विजयजी के शिष्य आगम दिवाकर पं० पुण्य विजयजी म. तथा आचार्य मेघस रिजी. लाभ विजयजी आदि तथा पुण्य विजयजी के शिष्य ५० दर्शन वि. जयभद्र वि. चन्द्र वि चरण वि० आदि। २ हंस विजयजी के ३ शिष्यों के प्रशिष्य ।
श्री के प्रथम शिष्य जिनमे दो रमणिक वि० तथा हेमेन्द्र वि. विद्यमान हैं । इसके अतिरिक्त उद्योत विजयजी, जयविजयजी,
श्री विवेक विजयजी महाराज का जन्म बलाद अमर विजयजी, खांति वि०, प्रिय विमहिम्मत (अहमदाबाद) में हुआ। पिता का नाम डुगरशीभाई विजयजी ६ नेमविजय जी आदि स्वर्गस्थ मुनिराजों तथा माता का नाम सौभाग्य लक्ष्मी था । संसारी नाम की शिष्य परम्पराएँ भी आपही की आज्ञानुवर्ती डाह्या भाई था। स० १६४८ में आ० विजयानन्द सरिजी रही और आज इन्हीं के समुदाय के साथ है। के शुभ हस्त से पट्टी (पंजाब) में दीक्षित हुए। तथा साध्वी समुदाय
तश्रा० विजय वल्लभ सरि के प्रथम शिष्य कहलाये । ___ आज्ञानुवर्ती साध्वियों में प्रवर्तिनी साध्वी देव आप बड़े सरल स्वभावी, शान्त मूर्ति एवं महान् श्री जी, जय श्री जी, प्र० दान_श्री जी, प्र० माणेक तपस्वी थे। आयम्बिल उपवास की तपस्या प्रायः श्री. प्रम श्री जी, प्र०कपूर श्री जी, चित्त श्री नीतीहती थी। स्वाध्याय में निरत रत रहते हुए। जी, शीलवती श्री जी, तथा विदुषी मृगावती श्री जी आदि के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं। वर्तमान में ।
जीवदया, शिक्षा प्रचार आदि के कई कार्य किये। आप की आज्ञानुवर्ती साध्वियों की संख्या १८० के बड़े गुरु भक्त थे। सं० २००० माह सुदी १२ को रात्री लग अग है। डीpaper
को ११। बजे बलाद में स्वर्ग सिधारे।