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जन श्रमण- ौरभ
श्राचार्य श्री विजय पूर्णानन्दसूरिजी
आप आचार्य श्रीविजय वल्लभ सूरिजी के शिष्य आचार्य ल'लत सूरिजी के पट्टधर एक प्रभावशाली आ० आचार्य हैं। दक्षिण भारत में जैन धर्म प्रचारार्थ एवं जैव शासन को प्रभावना हेतु आप श्री के प्रयत्न अतीव प्रशमनीय हैं।
पं० जनक विजयजी गणी
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दि० पं. पुण्य विजयजी महाराज आगम साहित्य का युगानुकूल लेखन, शोधन तथा प्राचीन ग्रन्थों का अन्वेषण तथा ज्ञान भंडारों के अमूल्य रत्ना को सुव्यवस्थित करने की प्रवृत्तियों के कारण आज आप समस्त जैन समाज के बड़े श्रद्धा भाजन एवं पूज्यनीय बने हुए हैं ।
आप तीन महीने की उम्र में मोहल्ले में हुई भयंकर आग दुर्घटना के समय एक मुस्लिम भाई द्वारा बचाये गये यह पुन्य की विजय थी इसीसे 'पुण्यविजय' नाम रक्खा गया। आपकी माता ने भी दीक्षा अंगीकार की । आपके गुरु चतुर विजयजी बड़े आगम वेत्ता विद्वान एवं अन्वेषक थे । अतः इनकी प्रवृत्ति भी इसी साहित्यिक दिशा में ही बढी और आज आप श्र द्वारा जैसलमेर खंभात बड़ौदा आदि कई स्थानों के प्राचीन ग्रन्थ भंडारों का उद्धार हुआ है।
आप आचार्य श्री समुद्रसूरिजी के प्रधान प्रिय गुरु भक्त शिष्य हैं । जैन धम प्रचार एवं समाजोन्नति हेतु चापके हृयद में एक उत्साह पूर्ण लगन है आपके विचार युगानुकूल सुधरे एवं सुलझे हुए हैं। आपकी मिलनसार प्रवृत्ति आगन्तुक को सहज ही में आकर्षित किये बिना नहीं रहती ।
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