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जैन श्रमण संघ का इतिहास UNICIL RISTIAN KIDSTINTENAD-missonIR AND TURMIS-TuralIL-PININSTITNISOLUND-CHINISolurali>Colnainscrun ISoneliom पन्थ है। बस तब ही से स्वामी भीखणजी द्वारा ४ थे आचार्य श्री जीतमलजी स्वामी प्रवर्तित सम्प्रदाय का नाम 'तेरापंथ' प्रसिद्ध हुआ। आप बड़े प्रभावशाली एवं साहित्यकार प्राचार्य
इस घटना के बाद सं० १८१७ आषाढ़ सुदी १५ हुए हैं। आपका विशेष परिचय 'महा प्रभाविक के दिन आपने भगवान को साक्षी मान कर पुनः जनाचार्य विभाग में पृष्ठ ६७ पर दिया जा चुका नवीन दीक्षा ग्रहण की।
है। आपके शासन में १०५ साधु और २२४ साध्वियां भीखणजी के धर्म प्रचार के क्षेत्र मारवाड़ मेवाड़ थी। आपका देहावसान ७८ वर्ष की अवस्था में थली प्रदेश, ढू ढाड़ तथा कच्छ प्रदेश विशेश भाद्र वदी १२ सं० १६३८ को जयपुर में हुआ। रहे । भीखणजी ने अपने जीवनकाल में ४६ साधु
५वें आचार्य श्री मघराजजी स्वामी तथा ५६ साध्वियों को प्रवर्जित किया था। आपका ।
___ आपका जन्म चैत सुदी ११ सं० १८६७ को देहावसान भादवा सुदी १३ सं० १८६० में हुआ।
बीदासर (बीकानेर में हुआ। पिता का नाम पूरणमल २ रे आचार्य भारीमालजी स्वामी जी बेगानी तथा माता का न.म वन्नाजी था। लाडनू
आपका जन्म मेवाड़ के मूहो ग्राम में सं० १८०३ में बाल्यकाल में ही दीक्षा हुई। आपका देहान्त ५३ में हुआ। पिता का जन्म कृष्णा जी लोढा तथा माता वर्ष की अवस्था में चैत वदी ५ सं० १६४६ को सरदार का नाम धारणी था। आपकी दीक्षा १० वर्ष की शहर में हुआ। आपने ३६ साधु और ८३ साध्वियों अवस्था में ही हो गई थी।
को प्रवर्जित किया। आपके शासनकाल में ३८ साध और ४४ ६ठे आचार्य श्री माणिकलालजी स्वामी साध्वियां थी। आपका देहान्त ७५ वर्ष की अवस्था श्रापका जन्म सं० १९१२ भादवा वदो ४ को में मेवाड़ के राजनगर ग्राम में माघ सुदी ८ सं० जयपुर में हुआ। पिता का नाम हुक्माचन्दजा थरड १८७८ को हुआ।
श्रीमाल तथा माता का नाम छोटांजी था। आपने १६ ३ रे आचार्य श्री रामचन्दजी स्वामी साधु और ३४ साध्वियों को प्रजित किया। देहाव
सान ४२ वर्ष की अवस्था में सं० १६७४ कार्तिक वदो आपका जन्म सं० १८५७ में हुआ। पिता वा ३ को सुजानगढ़ में हुआ। नाम चतुर जी बंब और माता का नाम कुसली जी था। आप भी बचपन में ही दीक्षित हो गये थे। ७- आचार्य श्री डालचन्दजी स्वामी आपके समय ७७ साधु और १.८ साध्वियां थी। आपका जन्म असाढ़ सुदो ४ सं० १६०४ को आपका ६२ वर्ष को अवस्था में सं० १६०८ को उज्जैन में हुआ। पिता का नाम कानोरामजी पीपाड़ा रावलियां प्राम में देहान्त हुआ।
तथा माता का नाम जड़ावजी था। देहावसान ५७
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