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महाप्रभाविक नैनाचाय
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IDIOMID ID TIDUIDADun lilto dil ID-iluw -HIS Iti-Nipal In IID INDILITDailu DILIDIOKES
जैनाचार्य श्री मदविजय वल्लभ सूरीश्वरजी महाराज "आधुनिक समय के सब से महान् जैन गुरु को गले लगाने के उच्च कार्यों से प्रत्येक जैन परिचित स्वर्गीय श्री मद्विजयवल्लभ सूरि, जिन का कुछ समय है। आचार्य श्री विजय ललितसूरि जी के मरुधर पूर्व बम्बई में स्वर्गवास हुआ, मेरी जानकारी में एक भूमि पर उपकार सर्व विदित हैं। हो ऐसे जैन साधु थे जिन्होंने सांप्रदायिकता का अन्त श्री विजयानन्द सूरिजी अन्तिम समय में पंजाब करने का प्रयास किया। उन्होंने सभी जैनों से प्रेरणा की रक्षा का भार श्री विजय वल्लभ सूरिजी को ही की कि वे 'दिगम्बर' और 'श्वेताम्बर' विशेषणों को संभला कर गए थे। इस 'जगत वल्लभ, की यह छोड़ कर 'जैन' का सरल नाम ग्रहण करें ताकि गृहस्यों संक्षिप्त जीवनी हैं:में नई जागृति का श्री गणेश हो सके।"
नामः-श्री विजय वल्लभ सूरि ये शब्द एक प्रसिद्ध विद्वान डाक्टर ने २२ जून १९५५ को "टाईम्स ऑव इण्डिया' में प्रकाशित अपने जन्म स्थान-बड़ोदा वि० १६२७ (भाई दूज) लेख में आचार्य श्री जी के लिए प्रयोग किये हैं । २१ माताः-इच्छा देवी सितम्बर १६५८ के 'हिन्दुस्तान' में आचार्य श्री विजय पिता:-श्री दीपचन्दजी बल्लभ सरिजी के बारे में ठीक ही लिखा है कि दीक्षा:-राधनपुर वि० १६४४ "प्राचार्य श्री, जिन्होंने अपनी सारी आयु देश सेवा,
गुरु श्री हर्षे विजयजी अहिंसा सत्य व शान्ति के प्रचार, ज्ञान तथा विद्या के । प्रसार, मानवता की निःस्वार्थ सेवा, साम्प्रदायिकता पदवी-आचार्य पद-लाहौर (१९८१) के विरोध, निर्धन तथा मध्यम वर्ग की सहायता तथा स्वर्गवासः-बम्बई (आसौज वदि ११ सं.२०११) विश्व शान्ति के सन्देश को संसार भर में फैलाने के मन्दिर प्रतिष्ठा व अंजनशलाकाः-सामाना, पवित्र उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगा दी-जैन धर्म के बड़ौत, बिनौली, अलवर, करलिया, नाडोल, बम्बई सब से बड़े माध्यात्मिक गुरु थे।"
उम्मेदपुर, स्यालकोट, रायकाट, बीजापुर कसूर, सूरत ___ श्री विजय वल्लभ सूरि के आज्ञानुवर्ती साधुओं ,
___ सादड़ी, साढौरा। एवं मुनिराजों में विशेष प्रसिद्ध है-पू० मुनिराज आगम प्रभाकर श्री पुण्य विजयजी महाराज । ससार उनके द्वारा स्थापित समाए- श्री आत्मानन्द भर में उनके कार्यों की मुक्त कण्ठ से प्रसंशा की जा जैन सभा (बम्बई, बीकानेर, भावनगर, पूना, देहली, रही है । पण्यास श्री विकास विजय जी का 'महेन्द्र बड़ौत, बिनौली, आगरा, शिवपुरी, जम्मु, पजाब के पचाँग' सारे जैन जगत में प्रसिद्ध है। आचार्य श्री प्रत्येक नगर में तथा मारवाद, गुजरात, काठियावाड विजय समुद्र रिजी तथा गणि श्री जनक विजयजी आदि प्रान्तो में) की समाज सेवाए', गुरु भक्ति व निर्धन एवं पतितों समाज सुधार:-श्री आत्मानन्द जैन महा सभा
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