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महाप्रभाविक जैनाचार्य
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कोटि के विद्वान् तथा तेजस्वी और प्रभावशाली साधु थे । आपने अनेकों ग्रन्थ की रचनाएं की। आप उच्च वक्ता थे। आपकी युक्तियाँ अकाट्य रहती थीं। ज्योतिष, वैद्यक आदि विषयों के भी आप ज्ञाता थे । आपके पाटवी शिष्य आचार्य उदयसूरिजी एवं आचार्य विजयदर्शन सूरिजी धर्मशास्त्र, व्याकरण, दर्शन न्याय के प्रखर विद्वान हैं। आप महानुभावों ने भी अनेकों प्रन्थों की रचनाएं की हैं। आचार्य उदयसूरिजी के शिष्य आचार्य विजयनन्दन सूरिजी भी प्रखर विद्वान् है । आपने भी श्रनेका प्रन्थों की रचनाएं की हैं।
श्री विजय कमल सूरीश्वरजी
आप अपने समय के एक सुप्रख्यात जैन समाज के विशेष श्रद्धा भाजन आचार्य हुए हैं। श्वेताम्बर श्रमण संघ के संगठन हेतु आप श्री के ही प्रयत्न से बड़ौदा में मुनि सम्मेलन हुआ | आपका जन्म राधन पुर निवासी राजमान्य एवं श्रीमन्त कोरडिया कुटुम्ब के श्री देलचन्द नेमचन्द भाई के पुत्र रूप में माता मेघबाई की कोख से वि० सं० १६१३ चैत्र शुक्ला २
दिन पालीताणा में हुआ । जन्म नाम कल्याणचन्द रक्खा गया । वि० सं० १६३६ वैशाख कृष्ण ८ को अहदाबाद के पास एक ग्राम में शांतमूर्ति मुनिराज श्री वृद्धिचन्दजा म के पास आपकी दीक्षा हुई और कमल विजय नाम रखा गया और तपा गच्छाधिपति मूलचन्दजी म के शिष्य घोषित किये गये ।
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अल्प समय में दी आपने जैनागमों का गहन अध्ययन कर लिया । वि.सं० १६४५ में श्री मूलचन्द जी मा० के अवसान पर संघ संचालन का भार वहन किया । स० १६४७ में पन्यास पद प्राप्त किया। आपकी प्रखर प्रतिभा से मुग्ध हो जैन संघ ने अहमदाबाद में
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सं० १६७३ महा सुद६ के दिन श्रचाय पद प्रदान क्रिया ।
आप कठोर क्रिया पालक एवं स्वाध्याय प्रेमी थे । अतः शिष्य समुदाय का प्रत्येक मुनि विद्या व्यसनी बना । जन समाज को उन्नति को ओर भी आपने विशेष लक्ष्य दिया । कई स्थानों पर कुम्प मिटा कर सम्प कराया ।
बड़ौदा के मुनि सम्मेलन में आप प्रमुख I सं० १६७४ वैशाख शुक्ला १० को सूरत में पं० आनन्द सागरजी को आचार्य पद प्रदान किया जो
गमोद्धारक श्री सागरानन्दसूरि के नाम से प्रख्यात हुए। ऐसे महान आत्मा आचार्य वर का आसोज सुदी १० के दिन बारडोली में स्वर्गवास हुआ।
श्री विजय केसर सूरीश्वरजी
परम योगीराज श्री विजय केशरसूरीश्वरजी म० का जन्म स० १६३३ पौष सुदी १५ को अपने ननिहाल पालीताणा में हुआ | आपका वतन बोटाद के पास पालीयाद प्राम था। आपके पिता का नाम माधवजी नागजी भाई तथा माता का नाम पान था । जन्म नाम केशवजी रक्खा गया। सं० १६.४० में आपका कुटुम्ब वढ़वाण रहने लगा। यहीं केशवजी की शिक्षा हुई। आपकी अल्पायु में माता पिता का देहावसान हो गया। इससे आपके हृदय में वैराग्य भावना प्रबल हुई संयोग से आचार्य श्री विजयकमनसूरीश्वरजी का ढ़ाण पदार्पण हुआ और यहीं स० १९५० में विजय रक्खा गया । सं० १६६३ में सूरत में गाणीपद आचार्य श्री के पास आपकी दीक्षा हुई । नाम केशरतथा १६७४ में बम्बई में पन्यास पद प्रदान किया गया । सं० १६८३ कार्तिक कृष्णा ६ को आचार्य पद व प्रदान की गई ।
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