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महा प्रभाविक जैनाचाय
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कलिकालसर्वज्ञ प्राचार्य हेमचन्द्र आगे चलकर महा प्रभावक होगा अतः उन्होंने उसके कलिकाल सर्वज्ञ श्राचार्य हेमचन्द्र, नफेवल जैन
___ माता-पिता को शासन को प्रभावना के लिए बालक धर्म की अपितु अतीत भारत की भव्य विभूति हैं।
को उन्हें सौंप देने के लिए समझाया। हषी तरेक ये संस्कृत प्राकृत मा हत्य संमार के मार्ग म चक्रवर्ती ।
और पुत्रप्रेम से गद्गद् होकर माता ने उस बालक कहे जा सकते हैं। काल कालभवज्ञ को उपाधि इनकी
को आचार्य श्री को सौंप दिया। आचार्य उसे लेकर सर्वतोमुखी प्रतिभा का परिचय देने के लिए पर्याप्त
खम्भात पधारे। यहाँ जैनकुल भूपण मंत्री उदयन है। पिटर्मन आदि पाश्चात्य विद्वानों ने इन्हें
शासन के रूप में नियुक्त थे। थाड़े समय तक वहाँ ज्ञान के महासागर' की उपाधि से अलंकृत किया है।
रखने के बाद सं० ११५४ में इन्हें दीक्षा दी गई और साहित्य का कोई भी अंग अछूना नही है जिस पर
सोमचन्द्र नाम रवाया गया । सं. ११६६ में आचार्य इन मडाप्रतिभा सम्पन्न प्राचार्य ने अग्नी चमत्कृति
पद प्रदान किया और 'हमचन्द्र सूरि' नाम रक्खा । पूर्ण लेखनी न चलाई हो। व्याकरण, काव्य, कोष,
इस समय इनकी अवस्था केवल २५ वर्ष की थी। लन्द, अलंकार, वैद्यक, धर्मशास्त्र, न्यायशास्त्र
हेमचन्द्राचार्य विचरते २ गुजरात की राजधानी गजनीति योगविद्या; ज्योतिष, मवतन्त्र, रसायन विद्या पाटन में आये । पाटन नरेश सिद्धराज जयसिंह
आदि पर आपने विपुल साहित्य का निर्माण किया। इनकी विद्वत्ता से मुग्ध हो गया। अपनी विद्वत्समा कहा जाता है कि इन्होंने साढ़े तीन कोइ लोक प्रमाण में इन्हें उच्च स्थान प्रदान किया और इन पर प्रन्थों की रचना की थी। वर्तमान में उपलब्ध ग्रन्थों असाधारण श्रद्धा रखने लगा । धीरे २ सिद्धराज की का प्रमाण इतना नहीं है इससे प्रकट होता है कि सभा में इनका वही स्थान हो गया जो विक्रमादित्य दूसरे ग्रन्थ विलुम हुए होंगे। तदपि उपलब्ध ग्रन्थों की सभा में कालिदास का और हर्ष की सभा में का प्रमाण भी विस्मय पैदा करने वाला है। इन बाणभट्ट का था। नरेश सिद्धराज जयसिंह की विशेष श्राचार्य को आज के युग के अनुरूप भाषा में जीवित- विनंति पर आचार्य श्री ने एक सर्वांग सम्पन्न वृहतविश्वकोष' की उपाधि दा जा सकता है।
व्याकरण की रचना की और इस व्याकरण का नाम जीवन परिचयः-गुर्जर प्रान्त के धन्धुसाग्राम "सिद्धहेम" रखा। जो सिद्धराज और प्राचार्य श्री के में एक मोढ वणिक दम्पति के यहाँ सं. ११४५ कार्तिक पुण्य संम्मरणों का सूचक है । पूर्णिमा को इनका जन्म हुआ। पिता का नाम चाचदेव
मोना जन्म आरिता का नाम चाचदेव आचार्य श्री का सिद्धराज पर बड़ा प्रभाव था। और माता का नाम चाहिनादेवी था इनका बाल्य यद्यपि सिद्वराज शैव था तदपि इन आचार्य श्री के नाम चगदेव था। एक दिन पाचार्य देवचन्द्रसूरि प्रभाव से उसने जैनधर्म के लिए कई उपयोगो कार्य धंधुका में आये । उनके उपदेश श्रवण हेतु चंगदेव किये। भी अपनी माता के साथ उपाश्रय में गया । बालक के सिद्धराज के बाद पाटन की राजगहो पर कुमारपाल शुभलक्षणों से आचार्य ने जान लिया कि यह बालक श्राया । कुमारपाल के संकट दिनों में आचार्य श्री ने
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