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महाप्रभाविक जैनाचार्य
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इसी समय में देवद्धिगणि ने नन्दीसूत्र की संक- अन्य टीकाओं में नहीं है । अतः मलगिरि की टीकाओं लना की। इसमें सब आगमों की सूची दी है। का विशेष महत्व है । मलधारी हेमचन्द्र ने भी आगमों
वल्लभी वाचना के बाद यह अंग कब नष्ट हा पर टोका लिखी है । गया और कर नवीन जोड़ा गया यह कुछ नहीं कहा दिगम्बर सम्प्रदाय के आगम जासकता। यह कहा सकता है कि अभयदेव की अन तक जिन आगमों का वर्णन किया गया है। टीका, जो कि बारहवीं शताब्दी के प्रारम्न की है- वे श्वेताम्बर परम्परा को ही मान्य है। दिगम्बर उसके पहले सकी रचना हुई है। इस तरह सम्प्रदाय के मन्तव्य के अनुसार अगादि आगम नन्दी की सूची में दिये गये कई श्रागम भी नष्ट विच्छिन्न हो गये हैं। अतः यह परम्परा अगों-शे
पकर दृष्टिवाद के आधार बनाये ग्रन्थों को आगम जिनदास महत्तर-चूर्णिकारों में जिनदास महत्तर रूप से स्वीकार करती है। आगममें षट खएडागन, प्रसिद्ध हैं। इन्होंने नन्दीमूत्र की तथा अन्य सूत्रों पर
क गयपाहुड, और महावन्ध हैं । षटखण्डागम को चूणियां लिखी हैं।
रचना पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्यों द्वारा की गई
है। कषायपाहुह की रचना प्राचार्य गुणधर द्वारा आगम-टीकाकार-श्राचार्य
हुई है। महावन्ध के रचयिता आचार्य भतबलि हैं । आगमों पर की गई संस्कृत टीकाओं में सबसे इसके अनिरिक्त. यह सम्प्रदाय कुन्दकुन्द नाम के प्राचीन प्राचार्य हरिभद्र की टोका है। उनका समय महाप्रभावक प्राचार्य के द्वारा बनाये गये समयसार, वि० ७५७ से ८५७ के बीच का है।
प्रवचनसा, पंचास्तिकाय अष्टपाहुइ, नियमास आदि आचार्य हरिभद्र के बाद दशवों शताब्दी में ग्रन्थों का आगम रूप में स्वीकार करती है। आचार्य शीलांक सूरि ने प्राचारांग और सूत्रकृताङ्ग पर कुन्द कुन्द का समय अभी निश्चत नहीं हो पाया है। संस्कृत टोकाएँ लिखी। इनके बाद प्रसिद्ध टीकाकार विद्वानों में इनके समय के विषय में मतैक्य नहीं है। शान्याचार्य हुर जिन्होंने उत्तराध्ययन पर विस्तृत टीका डा० ए० एन० उपाध्ये इनका ईसा की प्रथम शताब्दी लिखी है। इसके बाद सबसे अधिक प्रसिद्ध टोकाकार में हुए मानते हैं जब कि मुनि कल्याणविजयजी उन्हें
अभयदेव सरि हुए जिन्होंने नौ अंगों पर टीकाएँ पॉचची-छठी शताब्दी से पूर्व नीं मानते । गुणधर, जिखों । अभयदेव का समय वि० सं० १७२ से ११३५ पुष्पदन्त और भूतलि आचार्य का समय विक्रम है। भागमा पर टोका करने वालों में सर्वश्रेष्ठ स्थान को दूसरी तीसरी शताब्दी है। आचार्य मलयगिरि का है। इनका समय बारहवी मल्लवादी-ये आचार्य सिद्धसेन के समकालीन शताब्दी है। ये आचार्य हेमचन्द्र के समकालीन थे। वादप्रवीण होने से इन । नाम मल्लवादी था। थे । मलयगिरि की टीकाओं में प्राजेल भाषा में इन्होंने नयरक (द्वादशार) नाम 6 अद्भुत दार्शनिक दार्शनिक विवेचन मिलता है। कर्म, भाचार, भूगोल, प्रन्य को रचना को। इनके इम पन्थ का श्वेताम्बर खगोज आदि सब विषयों पर इतना सुन्दर विवेचन और दिगम्बर दोनों परम्परा पों में समान रूप से
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