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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास
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यह चतुर्याम संवरबाद उनका धर्म था। इसका की। परिणाम स्वरूप प्रापको केवल ज्ञान का आलोक इन्होंने भारत में प्रचार किया। इतने प्राचीन काल प्राप्त हुआ । आपने विश्वकल्याण के लिए चतुर्विध में अहिसा को इतना सुवस्थित रूप देने का) यह संघ की स्थापना की और ज्ञान का प्रकाश फैलाया। प्रथम ऐतिहासिक उदाहरण है।
सौ वर्ष की आयु पूर्ण कर भाप निर्वाण पधारे।। ____ "श्री पार्खामुनि ने सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह प्रभु पाश्वनाथ के बाद उनके पाठ गणधरों में इन तीन नियमों के साथ अहिंसा का मेल बिठाया। से शुभदत्त संघ के मुख्य गणधर हुए इनके बाद पहले अरण्य में रहने वाले ऋषि मुनियों के आचरण हरिदत्त, आयसमुद्र, प्रभ और केशि हुए । पाश्वनाथ में जो अहिंसा थी, उसे व्यवहार में स्थान न था के निर्वाण और केशि स्वामी के अधिकार पद पर अस्तु उक्त तीन नियमों के सहयोग से अहिंसा मान के बीच के काल में पार्श्वनाथ प्रभु के द्वारा सामाजिक बनी, व्यवहारिक वनी ।
उपदिष्ट व्रतों के पालन में क्रमशः शिथिलता आगई ___ "श्री पार्शामुनि ने अपने धम के प्रसार के लिए थी। इस समय निर्ग्रन्थ सम्प्रदाय में काल प्रवाह के संघ बनाया। बौद्ध साहित्य से ऐमा मालूम होता साथ विकार प्रविष्ट हो गये थ । सद्भाग्य से ऐसे है कि बुद्ध के काल में जो संघ अस्तित्व में थे उनमें समय में पुनः एक महाप्रतापी महापुरुष का जन्म जैन साधु तथा साध्वियों का संघ सब से बड़ा था।" हुया, जिन्होंने संघ को नवीन संस्कार प्रदान किये ।
उक्त उदाहरण से भगवान पार्श्वनाथ के महान ये महापुरुष थे चरम तीर्थ कर, भगवानम हावीर । जीवन क' झाँकी मिल जाती है। भगवान पानाथ वाराणसी-नरेश अश्वसेन और महारानी श्री वामा
। भ० महावीर और उनकी धर्म क्रन्ति देवी के सुपुत्र थे । गृहस्थदशा में भी आपने विवेक प्राचीन भारत के धर्मिक इतिहास में भगवान् शून्य नापसों से विचार संघर्ष किया और सत्य प्रचार महावीर प्रपल और सफल क्रांतिकार के रूप में का मंगल आरम्भ किया तत्पश्चात राजसी भव को उपस्थित होते हैं। उनकी धर्म क्रान्ति से भारतीय ठुकरा कर आप आत्म साधना के लिए निन्थ बन धर्मों के इतिहास का नवीन अध्याय प्रारम्भ होता गये । आपके हृदय में संमभाव का श्रोत उमड़ रहा है। वे बक्तालीन धर्मों का काया कल्प करने वाले था। साधनास्था में कमठ ने इन्हें भीषण कष्ट दिये और उन्हें नव जीवन प्रदान करने वाले युग निर्माता परन्तु अाप उस पर भी दण का श्रोत बहाते रहे। महापुरुष हुए । विश्व में अहिंसा धर्म की प्रतिष्ठा धरणेन्द्र ने आपकी उस उपसर्ग से रक्षा की ता भी का मर्वाधिक श्रेय इन्हीं महामानव महावीर को है। उम पर अनुराग न हुआ। आपत्तियों का पहाड़ मावन जानि के इस महान शिक्षक की उदास शिक्षाओं गिराने वाले कमठ पर न तो द्वेष हुपा और न भक्ति के अनुसरण में ही सच्चा सुख और शाश्वत शान्त करने वाले धरणेन्द्र पर अनुराग हुआ। इस प्रकार मन्निहित है । इस सत्य को यह विश्व जितना जल्दी पाप्रभु ने अबएड साम्यभाव को सफल माधना समझ सकेगा उतना ही उसका कल्याण हा सकेगा
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