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जैन श्रमण संघ का इतिहास BIDATHA ID- Doli IS IN HINDoll ID I No pilk is coin HIND-DILUND Kell us-ollidis gil. IND-IND Kointilip Drol. Itioeonlin ज्ञययागादिक में पशुओं की हिंसा होती थी। यह प्रथा साधारण, दीन, शूद्र और अति शूद्र भी मुनि बन आज कल बन्द होगई है। यह जैन धर्म की एक सके हैं । भगवान् के अपूर्व वैराग्य का बड़ा गहरा महाम् छाप ब्राह्मण धर्म पर अर्पित हुई है। यज्ञार्थ प्रभाव पड़ता था। इस लिए बड़े २ राजा, राजकुमार, होने वाली हिंसा से आज ब्राह्मण मुक्त हैं यह जैन रानियाँ, सेठ साहूकार और उनके सुकुमार भावान् धर्म का ही पुनीत प्रताप है।
के पास दीक्षित हा गये थे । भोग विलासों में सर्वादा भगवान महावीर के उपदेश, कार्य और पुण्य बेभान रहने वाले घनी नवयुवकों पर भी भगवान के प्रभाव का उल्लेख करते हुए कवि सम्राट डॉ. रविन्द्र नैराग्य और त्याग का गहरा असर पड़ा। राजगृही नाथ टेगौर ने कहा है:
के धन्ना और शालिभद्र जैसे धनकुबेरों के जीवन __महावीर ने डिंडम नाद से आर्यावर्त परिवत्तन को कथाएँ कट्टर से कट्टर भोगवादी के में ऐसा संदेश उद्घोषित किया कि धर्म कोई हृदय को भी हिला देती हैं । बड़े २ राजा महाराजा. सामाजिक रूढ़ि नहीं है परन्तु वास्तविक सत्य है। ओं के सुकुमार पुत्रों को भिक्षु का बाना पहने हुए, मोक्ष बाह्य क्रिया काण्डों के पालन मात्र से नहीं तप और त्यागो की साक्षात् जीती जागती मूर्ति बने मिलता है परन्तु सत्य धर्म स्वरूप में आश्रय लेने से हुए और गाँव गाँव में अदिसा दुदुभी बजाते हुए मिलता है। धर्म में मनुष्य-मनुष्य के बीच का भेद देखकर भगशन के महान् प्रभाव से हृदय पुलकित नहीं रह सकता है । कहते हुए आश्चर्य होता है कि हो उठता है । मगध साम्रट श्रणिक की उन महारानियों महावीर की ये शिक्षाएं शीघ्र ही सब बाबायों को को जो पुष्प शय्या से निचे पैर तक नहीं रखतो थो पार कर सारे आयावत में व्याप्त हागई।" जब भिक्षाणियों के रूप में घर-घर भिक्षा माँगते हुए, ___ कवि सम्राट के इन वाक्यों से भगवान् महावीर धर्म की शिक्षा देते हुए देखते हैं तो हमारा हृदय के उपदेशों का क्या पुण्य प्रभाव हुआ सो स्वयमेव एकदम “धन्य धन्य" पुकार उठता है। यह था व्यक्त हो जाता है।
भगवान महावीर के उपदेशों का चमत्कारी पुण्य ___ भगवान महावीर पूर्ण वीतराग थे अतः उनकी प्रभाव । दृष्टि में राजा-रक का, गरीब-अमीर का, धनी-निर्धन भगवान के उपदेश को सुनकर वीरागंक, का, आँच-नीच का कोई भेद नहीं था। वे जिस वीरयश, सजय, एणेयक, सेय, शिव उदयन और निस्पृहता से रंक को उपदेश देते थे उसी निररहता शंख इन समकालीन राजाओं ने प्रवज्या अंगीकार से राजा को भी उपदेश देते थे। वे राजा आदि को की थी। अभयकुमार, मेयकुमार आदि अनेक राजजिस तत्परता से उपदेश देते थे उसी तत्परता से कुमारों ने घर-बार छोड़कर व्रतों को अंगीकार किया। साधारण जीवों को भी उपदेश देते थे। यही कारण स्कन्धक प्रमुख अनेक तापस तपस्या का रहस्य है कि उनके संघ में जहाँ एक ओर बड़े २ राजा राज्य जानकर भगवान के शिष्य बन गये। अनेक स्त्रियाँ का त्याग कर अनगार बने हैं वहीं दूसरी ओर भी ससार की असारता जानकर श्रमण संघ में
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