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जैन श्रमण परम्परा
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पर पिताजी की मृत्यु से उन्हें नैराग्य हो मया था। मंगलम् ।। श्री स्थूलिभद्र जी के पास वीर नि० सं० अतः प्राचार्य संभूतिविजयजी के पास दीक्षा १७६ में आर्य महागिरी ने दीक्षा ली। अंगीकार कर आत्मोत्कर्ष में लग गये। आर्य महागिरी और आये सुहस्तिसरि
दीक्षित होने के बाद आपने गुरु आज्ञा ले श्री स्थूलिभद जी के पाट पर उक्त दोनों प्राचार्य प्रथम चातुर्मास कोशा नैश्या के उद्यान में ही किया हए । आये महागिरी महान् त्यागी योगीश्वर थे। पर वह था साधना के लिये। वे अपनी साधना से
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आर्य सुइस्ति सूरिजी ने तत्कालीन राजाओं पर किंचित भी विचलित नहीं हुए। यही नहीं इनकी अच्छा प्रभाव जमाया था मौर्य सम्राट चन्दगुप्त के कठोर तपः साधना से प्रभावित हो स्वयं कोशा गैश्या ने पौत्र और महाराजा अशोक के पुत्र महाराजा सम्प्रति
भी जैन धर्म की दीक्षा अंगीकार कर सुसाध्वी बना। आपका अनन्य भक्त बन गया था। ___ आचार्य श्री के सदुपदेशों का तत्कालीन कई राजा सम्प्रति ने उज्जनी नगरी में एक वृहत साधु राजाओं पर भी बड़ा प्रभाव पड़ा। नंद वंश के सम्मेलन भरवाया और भारत के कोने कोने में अंतिम राजा तथा मौर्य सम्राट राजा चन्द्रगुप्त को साधुओं को भेजकर जैन धर्म का प्रचार करवाया। भी जैनधधं में आपही ने प्रति बोधित किया था। यही नहीं सम्प्रति ने सवालाख जैन मन्दिरों का भी
इस प्रकार आपने जन शासन की महान् प्रभावना निर्माण कराया था। छत्तीस हजार जन मन्दिरों का की थी।
जिर्णोद्धार कराया, सातसौ दानशालाएँ खुलवाई, एकवार भद्रबाहू स्वामी के अतेवासी श्री विशाखा साकरोंड़ जिन बिम्ब, ६५ हजार धातु प्रतिमा कराई। चार्य अपने गुरु के कालधर्म प्राप्त करने पर जब कहते हैं महाराजा संप्रति का नियम था कि जब तक मगध आये तो उन्होंने देखा कि स्थूलीभदजो के साधु नये मन्दिर निर्माण की बधाई नहीं आती तब तक अब वनों और उद्यानों को छोड़ कर नगरों में रहने दतौन नहीं करता था। लगे हैं। उन्हें यह उचित न लगा। दोनों में इस धाधणो, पावागढ़, हमीरगढ, रोहीशनगर, इलौरा विषय को लेकर काफी विचार विमर्ष भी हुआ। पर की गुफा में नेमीनाथजी का मन्दिन देव पत्तन विचार एक न होसके । बस यहीं से जैन शासन रूप (प्रभास पट्टन) ईडरगढ़ सिद्धगिरी सवंतगिरी श्री वृक्ष की दिगम्बर तथा श्वेतम्बर रूप दो शाखाएँ शखेश्वरजी, नदीय नादिया ब्राह्मण वाटक (वामन फूटी। यहीं से सचेलकत्व और अचेलकत्व का प्रश्न वाइजी का प्रसिद्ध महावीर स्वामी का मन्दिर) नादि विशेष पर्चास्पद बना अचेलकत्व के आग्रह स्थानों में कई भव्य जिन मन्दिर अब भी उनकी पाने दिगम्बर कहलाये।
अमर कीर्ति गारहे हैं। श्वेताम्बर संघ ने अपनी स्तुति में श्री स्थूलिभद्र सुप्रसिद्ध इतिहास वेता कर्नल टॉड ने टॉड जी को प्रमुखता दी:-मंगलम् भगवान वीरो, मंगलम् राजस्थान, हिन्दी, भाग १ खंड २ अ० २६ पृष्ट ७२१ गौतम प्रभु। मंगलम् स्थूलिभदाद्या, जैनधर्मोस्तु से ७२३ में लिखा है:
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