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जैन श्रमण-परम्परा
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ग्रन्यों की रचना स्थाविरों के द्वारा की गई मानो इस अवसर्पिणी काल की जैन परम्परा में केवल जाती है।
ज्ञान प्राप्ति का श्रोत भवगान ऋषभदेव से प्रारंभ दिगम्बर परम्परा के अनुसार वर्तमान में द्वादशांग होकर अतिम केवल ज्ञानी श्री जम्बू स्वामी तक और अंग बाय ग्रन्थ सब विच्छिन्न होना माना जाता विसर्जित होता है । श्री जम्बूस्वामी के निर्वाण के साथ जाता है जब कि श्वेताम्बर मतानुयायी ऐसा नहीं निम्न दस विशेषताओं का भी लोप होगया। , मानते।
१ परम अवधि ज्ञान २ मनः पर्णव ज्ञान ३ श्वेताम्बरों में मूर्ति पूजक एवं स्यानक वासी पुलाक लब्धि ४ आहारक शरीर ५ क्षायिक सम्पत्र सामुदायों में भी अंग बाह्य ग्रन्थों परस्पर कुछ ६ यथा ख्यात चरित्र ७ जिन कल्पी साधु ८ परिहार भेद हैं।
विशुद्ध चरित्र ६ सूक्ष्मी संपराय चरित्र १० यथा - २ श्री जम्बू स्वामी
ख्यात चारित्र इस प्रकार भगवान महावीर के निर्वाण भगवान महावीर स्वामी को पाट परम्प के के पश्चात् ६४ वर्ष तक केवल ज्ञान रहा। द्वितीय पट्टधर श्रीजम्बू स्वामी बड़े प्रभाविक महापुरुष ३ श्री प्रभव स्वामी हुए हैं । आप एक बड़े श्रीमन्त व्यापारी के पुत्र थे। आप विन्ध्याचल पर्वातान्तर्गत जयपुर के राजा अखट सम्पति होने पर भी पैराग्य की प्रबलता से जयसेन के पत्र थे और प्रारंभ में इनका सम्बन्ध एक अपने विवाह के दूसरे दिन ही अपनी नव विवाहिता कख्यात भीमसेन के डाकू दल से था । जब इन्होंने आठों रानियों का छोड़कर आपने दीक्षा अंगीकार श्री जम्बकुमार के विवाह करके ६६ करोड़ का दहेज की थी । विवाह के सुहागरात को जब आप महलों में
लाने का समाचार सुना तो उसी रात्री को ५०० चोरों सो रहे थे तर ५०० चोर महलों में सेंध लगाकर
सहित उनके महलों में चोरी करने वा प्रयत्न किया और चोरी करने का प्रयत्न कर रहे थे। श्री जम्बू स्वामी
एवज में जम्बुकुमार के सदुपदेशों से मुक्ति धन प्राप्त उस समय ध्यान मग्न थे। ध्यान खुलने पर अापने
कर जम्बु स्वामी के ही महा प्रतापी पट्टघर 'श्री प्रभव सेंध लगाते चोरों को चोरी करने का दुस्परिणाम ,
पाम स्वामी' हुए। समझाया और इस सुमार्ग को छोड़े भात्मोद्वार का
दीक्षा समय आपकी आयु मात्र ३० वर्ष थी। संदेश सुनाया। इस उपदेश का इनाना प्रभाव पड़ा बीस वर्ष तक ज्ञान साधना के उपरान्त ५० वर्ष की कि ५० ही चोर आपके साथ साधु बनने को कटिबद्ध प्राय में आप जैन संघ के नामक आचार्य बने । होगये । देखते ही देखते विवाह के दूसरे ही दिन श्री आपने भी अनेक बौदान्तिकों और याज्ञिकों को जम्ब स्वामी, नव विवाहिता आठों पत्नियां, खद के अपने उपदेश बल से जैन धर्मानुयायी बनाया ।
तत्कालीन महा पंडित स्वयंप्रभ ब्राह्मण को प्रतिबोध माता पिता, पाठों स्त्रियों के माता पिता तथा ५००
- प्रदान कर जन धर्म में दीक्षित बनाया। जो भारके चोर इस प्रकार कुल ५२७ भव्य आत्माओं ने दीक्षा पर भगवान महावीर के चतुर्थ पट्टघर हुए। स्वीकार की। श्री जम्बू स्वामी की अन्य कथाएँ भी श्री प्रभव स्वामी वीर निर्वाण संवत् ७५. में जैनशास्त्र में समादरणोय हैं।
सग पधारे।
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